पता होने के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध की जानकारी न देना गंभीर अपराध: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जानकारी के बावजूद नाबालिग के खिलाफ यौन हमले की रिपोर्ट नहीं करना एक गंभीर अपराध है और अपराधियों को बचाने का प्रयास है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत अपराध की तुरंत और उचित रिपोर्टिंग बेहद जरूरी है और ऐसा करने में विफलता कानून के उद्देश्य को विफल कर देगी। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के पिछले साल अप्रैल के फैसले को रद्द कर दिया जिसमें एक डॉक्टर के बारे में प्राथमिकी और आरोप पत्र को रद्द कर दिया गया था। डॉक्टर ने यह जानकारी होने के बावजूद कि एक छात्रावास में कई नाबालिग लड़कियों का यौन उत्पीड़न हो रहा है, इसके बारे में अधिकारियों को सूचित नहीं किया था।
शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनाया फैसला
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि यह सच है कि मामले में अन्य आरोपियों के संबंध में प्राथमिकी और आरोपपत्र अभी भी बाकी है। पीठ ने अपने 28 पेज के फैसले में कहा कि लेकिन जानकारी के बावजूद किसी नाबालिग बच्चे के खिलाफ यौन हमले की रिपोर्ट न करना एक गंभीर अपराध है और यौन उत्पीड़न के अपराधियों को बचाने का प्रयास है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुलिस के माध्यम से महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर एक अपील पर अपना फैसला सुनाया। पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए पिछले फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है जहां घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को केवल संसद की एक उम्मीद और अपीलकर्ता को दर्द देने वाला भ्रम बना दिया गया है।
नाबालिग आदिवासी लड़कियों के खिलाफ हुआ था यौन अपराध
शीर्ष अदालत ने पाया कि मामले में प्राथमिकी नाबालिग आदिवासी लड़कियों के खिलाफ यौन अपराध करने के आरोप में दर्ज की गई थी, जो राजुरा के एक स्कूल की छात्रा थीं और इसके गर्ल्स हॉस्टल में रह रही थीं। पाया गया कि जिस डॉक्टर की याचिका पर हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था, उसे पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध की रिपोर्ट नहीं करने पर आरोपित किया गया था। पीठ ने यह भी कहा कि जांच के दौरान यह पाया गया कि 17 नाबालिग लड़कियों के साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया था और छात्रावास में भर्ती लड़कियों के इलाज के लिए डॉक्टर को नियुक्त किया गया था। 17 पीड़ितों में से कुछ ने बयान दिया था कि डॉक्टर को उन पर यौन हमले की सूचना दी गई थी।