राष्ट्रीय

महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन जो उन्हें मानती गृहिणी : कोर्ट

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन हैं, जो उन्हें प्राथमिक देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में मानती है और इस तरह उन पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का एक असमान दायित्व है. शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाओं के कार्यस्थल पर पहुंचने के बाद उनके साथ भेदभाव के लगातार पैटर्न को पहचानने में राज्य द्वारा वास्तविक समानता प्राप्त करने का सही उद्देश्य पूरा किया जाना चाहिए. न्यायालय ने उल्लेख किया कि पति-पत्नी की पोस्टिंग के लिए जो प्रावधान किया गया है, वह मूल रूप से महिलाओं के लिए विशेष प्रावधानों को अपनाने की आवश्यकता पर आधारित है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 15 (3) द्वारा मान्यता प्राप्त है.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, ‘‘जिस तरह से राज्य द्वारा एक विशेष प्रावधान को अपनाया जाना चाहिए वह एक नीति विकल्प है, जिसका इस्तेमाल संवैधानिक मूल्यों और प्रशासन की जरूरतों को संतुलित करके किया जाना चाहिये.”

पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि राज्य को संवैधानिक मानदंडों के अधीन एक आदर्श नियोक्ता के साथ-साथ एक संस्था के रूप में अपनी भूमिका में वास्तविक समानता के मौलिक अधिकार को ध्यान में रखना चाहिए, जब वह अपने कर्मचारी के लिए भी नीति तैयार करता है.”

पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें अंतर-आयुक्तालय स्थानान्तरण (आईसीटी) को वापस लेने वाले एक परिपत्र की वैधता को बरकरार रखा गया था. यह कहा गया कि केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क आयुक्तालय निरीक्षक (केंद्रीय उत्पाद, निवारक अधिकारी और परीक्षक) समूह ‘बी’ पदों की भर्ती नियम 2016 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘‘महिलाएं पितृसत्तात्मक मानसिकता के अधीन हैं जो उन्हें देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में मानती हैं और इस प्रकार, वे पारिवारिक जिम्मेदारियों के असमान बोझ से दब जाती हैं.”

पीठ ने कहा कि इस न्यायालय ने कार्यस्थल पर लिंग के कारण व्यवस्थागत भेदभाव के बारे में बात की है, जो पितृसत्तात्मक ढांचे में समाहित है. पीठ ने कहा, ‘‘कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा समय-समय पर जारी किए गए कार्यालय ज्ञापनों (ओएम) ने माना है कि राज्य के कार्यस्थल में महिलाओं को समानता और समान अवसर प्रदान करने के मद्देनजर सरकार के लिए नीतियों को अपनाना आवश्यक हो जाता है, जो कार्यस्थल में महिलाओं के लिए औपचारिक समानता से अलग अवसर की वास्तविक समानता पैदा करता है.”

पीठ ने कहा कि महिलाओं के कार्यस्थल पर भेदभाव के लगातार पैटर्न को पहचानने में राज्य द्वारा वास्तविक समानता प्राप्त करने का सही उद्देश्य पूरा किया जाना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनौती का दूसरा आधार जो उठाया गया है वह यह है कि लागू परिपत्र राज्य के कार्यबल में दिव्यांग व्यक्तियों की जरूरतों को ध्यान में नहीं रखता है. पीठ ने कहा, ‘‘दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार कानून, 2016 समाज के दिव्यांग सदस्यों के लिए उचित व्यवस्था के सिद्धांत को मान्यता देने के लिए एक वैधानिक आदेश है.” साथ ही पीठ ने कहा, इसलिए नीति के निर्माण में उस आदेश को ध्यान में रखना चाहिए, जो संसद दिव्यांगों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार के आंतरिक तत्व के रूप में लागू करता है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights