पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के संवैधानिक अधिकार पर जताया संदेह; की तल्ख टिप्पणियां, जानें क्या बातें कही
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ विपक्ष की तरफ से लाया गया अविश्वास प्रस्ताव नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने रद्द कर दिया। इसी के साथ पाक में एक बार फिर संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम इमरान की सरकार की ओर से पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 5 का जिक्र करते हुए अविश्वास प्रस्ताव रद्द कराना और इसके बाद राष्ट्रपति से सिफारिश कर संसद भंग कराने का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक है।
इमरान ने पाकिस्तान को संवैधानिक संकट में धकेला: जिबरान नसीर
पाकिस्तानी अखबार द डॉन में छपे संपादकीय का शीर्षक ही रखा गया है- ‘लोकतंत्र का विनाश’। इसमें कहा गया- “पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के कदम ने संसदीय प्रक्रिया को कुचलने और देश को एक संवैधानिक संकट में धकेलने का काम किया है।” एक्सपर्ट जिबरान नसीर ने इस अखबार से बातचीत में कहा अगर इस लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ ही छेड़छाड़ की गई तो इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ का वजूद खतरे में आ जाएगा। लोकतंत्र तभी ठीक ढंग से काम कर सकता है जब सभी राजनीतिक दल, नेता और संस्थान खुद को साझा तौर पर उच्च मूल्यों के लिए समर्पित कर सकें। यही हमारे संविधान की मुख्य बात है। उन्होंने कहा कि इसके बजाय पीटीआई ने खुद को बचाने के लिए लोकतंत्र को ही बली चढ़ा दी। लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि अगर लोकतंत्र नहीं बचा तो वे भी नहीं बचेंगे।
सरकार ने संवैधानिक प्रक्रिया का ही पालन नहीं किया: सरूप इजाज
पाकिस्तान के कानून के जानकार सरूप इजाज से जब पूछा गया कि क्या इमरान सरकार का यह कदम वैध था? तो उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया तो यह संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ लगता है। जब अविश्वास प्रस्ताव पेश हो चुका है और अटॉर्नी जनरल कोर्ट से कह चुके हैं कि इस पर मतदान जायज है, तो सरकार और डिप्टी स्पीकर का इस तरह एक कायदा बताकर अविश्वास प्रस्ताव रद्द करने का फैसला संविधान के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ही सच्चाई रखेगा।
उन्होंने कहा- “अगर कोर्ट सरकार की ओर से उठाए गए इस कदम को दुर्भावनापूर्ण इरादे और क्षेत्राधिकार में दखल मानती है तो सरकार के संसद भंग करने के फैसले को अमान्य करार दिया जा सकता है। क्योंकि कोर्ट के फैसले के बाद पूरी बात वहीं, वापस आ जाएगी कि सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव बरकरार है, जिस पर संसद में वोटिंग कराना अनिवार्य होगा।”
संसद को भंग करने का फैसला कानून का उल्लंघन: रीमा उमर
उधर जियो न्यूज ने कानूनी एक्सपर्ट और टॉक शो होस्ट मुनीब फारूक के हवाले से कहा कि प्रधानमंत्री का यह कदम पूरी तरह असंवैधानिक है। दक्षिण एशिया में एडवोकेट्स फॉर जस्टिस एंड ह्यूमन राइट्स (आईसीजे) की लीगल एडवाइजर रीमा उमर के मुताबिक, इसमें अगर-मगर की कोई गुंजाइश नहीं है। डिप्टी स्पीकर का फैसला पूरी तरह असंवैधानिक है। इमरान खान के पास मौजूदा समय में कोई अधिकार नहीं है कि वे राष्ट्रपति से संसद भंग करने की सिफारिश कर सकें। इसलिए संसद भंग करने फैसला भी संविधान के मुताबिक नहीं है।
संसदीय मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ताकतें सीमित: अकरम रजा
पाकिस्तानी मीडिया चैनल से बातचीत में लीगल एक्सपर्ट सलमान अकरम राजा ने कहा कि विपक्ष के पास सिर्फ एक ही रास्ता था कि वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और इस असंवैधानिक फैसले के खिलाफ कोर्ट के जरिए संविधान का पालन करवाए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 69 के तहत नेशनल असेंबली या सीनेट के किसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए फैसलों में दखल का कोर्ट को अधिकार: मोइज जाफरी
लीगल एक्सपर्ट अब्दुल मोइज जाफरी ने कहा कि अनुच्छेद 69 संसदीय मामलों में दखल की कोर्ट की ताकतों को सीमित तो करता है, लेकिन अगर सदन में ही कोई असंवैधानिक कार्य हो रहा हो तो यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह संविधान का पालन करवाए। उन्होंने कहा कि इस मामले में डिप्टी स्पीकर के फैसले को कोर्ट बदल सकता है। खासकर जब आपके कदम दुर्भावनापूर्ण इरादे से लिए गए हों।