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हाईकोर्ट की सख्‍त ट‍िप्‍पणी के साथ मुख्तार की जमानत अर्जी खारिज, कहा- र‍िहा हुआ तो सबूतों से करेगा छेड़छाड़

भारतीय लोकतंत्र की यह त्रासदी है कि मुख्तार अंसारी जैसे अपराधी यहां विधि निर्माता हैं। यह तीखी टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने एंबुलेंस प्रकरण में माफिया मुख्तार अंसारी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की। उन्होंने कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र पर लगा एक दाग है।

राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने मुख्तार की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए दलील दी कि 21 दिसंबर 2013 को बाराबंकी के परिवहन विभाग में डॉ. अल्का राय के नाम से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एक एंबुलेंस का पंजीकरण कराया गया।

मामले का खुलासा होने पर जब विवेचना हुई तो डॉ. अल्का राय ने खुद स्वीकार किया कि मुख्तार अंसारी के लोग उनके पास कुछ दस्तावेज लेकर आए थे, जिस पर उन्होंने भय व दबाव में दस्तखत कर दिए। यही नहीं विवेचना शुरू होने के बाद महिला चिकित्सक पर यह दबाव भी डाला गया कि वह कहे कि मुख्तार की पत्नी अफसा अंसारी चार-पांच दिन के लिए एंबुलेंस को किराए पर पंजाब ले गई थी। जबकि एंबुलेंस का इस्तेमाल अत्याधुनिक अवैध हथियारों से लैस मुख्तार के लोगों को लाने ले जाने के लिए किए जाने का आरोप है।

कोर्ट ने मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज 56 आपराधिक मुकदमों का जिक्र करते हुए आदेश में कहा कि लोगों के दिल व दिमाग में अभियुक्त का भय है। ऐसे में कोई भी उसे या उसके आदमियों को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करता। लिहाजा अभियोजन की इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त जमानत पर बाहर आकर साक्ष्यों व गवाहों को प्रभावित करेगा

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