विप्रो की वजह से बनी इंफोसिस, नारायण मूर्ति को नहीं दी थी नौकरी, गलती स्वीकार चुके हैं अजीम प्रेमजी
नई दिल्ली. इंफोसिस (Infosys) के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) ने एक बार विप्रो (Wipro) में नौकरी के लिए अर्जी दी थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया. जिसके बाद आईटी उद्योग में विप्रो के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धियों में से एक इंफोसिस का जन्म हुआ. अरबपति बिजनेसमैन नारायण मूर्ति ने शनिवार को सीएनबीसी-टीवी18 को एक इंटरव्यू में यह दिलचस्प किस्सा सुनाया. विप्रो के पूर्व अध्यक्ष अजीम प्रेमजी (Azim Premji) ने बाद में नारायण मूर्ति से कहा था कि उन्हें काम पर नहीं रखने का फैसला एक गलती थी. उन्होंने खुलासा किया कि ‘अजीम ने एक बार मुझसे कहा था कि उसने जो सबसे बड़ी गलती की, वह मुझे काम पर न रखना था. अगर उसे विप्रो ने काम पर रखा होता, तो उसके और प्रेमजी की कंपनी, दोनों के लिए चीजें अलग ढंग से होतीं.’
1981 में नारायण मूर्ति ने अपने छह दोस्तों के साथ और पत्नी सुधा मूर्ति से मिले 10,000 रुपये की रकम के साथ इंफोसिस की स्थापना की. एक तरफ नारायण मूर्ति ने शून्य से शुरुआत की, जबकि प्रेमजी ने अपने विरासत में मिले वनस्पति तेल साम्राज्य को एक आईटी सॉफ्टवेयर फर्म में बदल दिया. 12 जनवरी तक इंफोसिस की मार्केट वैल्यू 6.65 लाख करोड़ और विप्रो की मार्केट वैल्यू 2.43 लाख करोड़ है. नारायण मूर्ति की तकनीकी उद्यमी बनने की यात्रा आईआईएम अहमदाबाद में एक शोध सहयोगी के रूप में नौकरी के साथ शुरू हुई. बाद में उन्होंने एक मुख्य सिस्टम प्रोग्रामर के रूप में काम किया और एक सहयोगी के साथ टीडीसी 312 के लिए भारत का पहला बेसिक दुभाषिया विकसित किया.
इंफोसिस की राह
इसके बाद उन्होंने अपना स्वयं की आईटी कंपनी सॉफ्ट्रोनिक्स शुरू किया, जो बाद में फेल हो गई. बहरहाल परिवार को बिजनेस से जोड़ने के बारे में नारायण मूर्ति के विचार अजीम प्रेमजी से काफी अलग हैं. जबकि रिशद प्रेमजी ने 2019 में अपने पिता के पद छोड़ने के बाद विप्रो की कमान संभाली, वहीं नारायण मूर्ति का दावा है कि उनका बेटा रोहन इंफोसिस का हिस्सा बनने के लिए कभी नहीं कहेगा. उन्होंने सीएनबीसी-टीवी18 को बताया कि मुझे लगता है कि ‘वह इन विचारों में मुझसे भी ज्यादा सख्त हैं, वह ऐसा कभी नहीं कहेंगे.’
एक गलत आदर्शवादी
दशकों पहले अपनी पत्नी सुधा मूर्ति की इंफोसिस में शामिल होने की इच्छा पर भी उनकी ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. नारायण मूर्ति ने कहा कि उन्होंने इन्फोसिस का हिस्सा बनने में उनका समर्थन नहीं किया. हाल ही में उन्होंने कबूल किया कि उन्हें बाद में इस फैसले पर पछतावा हुआ. मूर्ति ने कहा कि ‘उनकी इंजीनियर पत्नी हम सभी सातों से अधिक योग्य थीं. जब उन्होंने इंफोसिस टीम का हिस्सा बनने की उनकी इच्छा का समर्थन नहीं किया तो वह गलत आदर्शवादी थे.’