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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बच्चों के साथ ओरल यौन उत्पीड़न पर सुनाया अहम फैसला, पाक्सो एक्ट की व्याख्या की

बच्चों के यौन उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक अहम फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने बच्चों के साथ होने वाले ओरल सेक्स को ‘अति गंभीर अपराध’ मानने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस (POCSO) एक्ट के तहत दंडनीय माना है.

हाईकोर्ट ने ये फैसला एक आरोपी की याचिका पर दिया है, जिस पर एक बच्चे के साथ ‘ओरल सेक्स’ करने का आरोप था. इस मामले में आरोपी को झांसी की निचली अदालत ने दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी.

सोनू कुशवाहा ने झांसी की निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल कुमार की बेंच ने ये फैसला दिया है.

हाईकोर्ट ने ओरल सेक्स को ‘अति गंभीर अपराध’ की श्रेणी से बाहर रखा है, लेकिन इसे POCSO एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है. कोर्ट ने कहा कि ये कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है. ऐसे मामलों में POCSO एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती.

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले में सुधार करते हुए दोषी की सजा को 10 साल से घटाकर 7 साल करने का फैसला दिया है. साथ ही कोर्ट ने दोषी पर 5 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

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