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फुटबाल को केंद्र में रख बनी एक दमदार फिल्म

काफी लम्बे अरसे के बाद भारत सरकार की इकाई राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम एक ऐसी फिल्म के साथ सिनेमा के सुनहरे परदे पर लौटी है जिसमें एक स्लम बस्तियों में रहकर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले उन स्टूडेंट्स के अंदर छिपी ऐसी प्रतिभा को डॉयरेक्टर मनीष तिवारी ने उजागर किया है जिसकी तारीफ तो बनती है यूं तो फुटबाल को लेकर प्रकाश झा ने भी फिल्म बनाई तो महानायक अमिताभ बच्चन ने भी फिल्म में फुटबाल कोच का रोल निभाया। देश की इस सरकारी संस्था का मुख्य उद्देश्य ही सीमित साधनों में अच्छी प्रतिभाओं को लेकर अच्छे सिनेमा का निर्माण करना है।मुझे ऐसा लगता है कि पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से बनने वाली फिल्मों की गति थम सी गई हो लेकिन अब इस संस्था की चिडियाखाना के जोरदार प्रचार के सिनेमाघरों में रिलीज की देख ऐसा यकीन बंधा है की आने वाले दिनों में भी एन एफ डी सी के बैनर तले बनने वाली फिल्मों की रफ्तार बढ़ेगी राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से बनी इस फिल्म की कहानी का प्लॉट ठीकठाक है। अगर आप फैमिली के साथ साफ सुथरी और एक मैसेज देती फिल्मों के शौकीन है तो आप चिड़ियाखाना’ देखने जाए।

स्टोरी प्लॉट

फिल्म की कहानी फुटबॉल के बैकग्राउंड में है। इस फिल्म को देख लगता है की सरकार को क्रिकेट की तरह ही फुटबॉल खेल की भी महत्व देना चाहिए।कहानी बिहार से अपनी मां के साथ अब मुंबई की एक स्लम बस्ती में आए एक ऐसे सूरज की है , एक बंगले में घर का काम करने वाली के बेटे सूरज को बस्ती के एक सरकारी स्कूल में एडमिशन मिलता है। कुछ पारिवारिक वजहों से सूरज की मां बार- बार शहर बदलती है , स्टडी में सूरज का ज्यादा ध्यान नहीं हैं उसका सारा ध्यान फूटबाल खेलने पर ही लगा रहता है । फूटबाल के प्रति सूरज में गजब का जुनून है ।सूरज भी स्कूल में बच्चों के साथ फुटबॉल खेलना शुरू करता है शुरू में सूरज का फुटबाल टीम में खेलना टीम के सीनियर को पसंद नही लेकिन कुछ मुश्किलों के बाद सूरज भी इसी टीम में एडजस्ट हो जाता है। एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल बताते हैं कि स्कूल के ग्राउंड की लीज खत्म होने वाली है। यह लीज उसी सूरत में फिर आगे बढ़ सकती है जब स्कूल की टीम शहर के एक नामी पब्लिक स्कूल की मजबूत टीम को हरा दे ।

ओवर ऑल

लेखक-निर्देशक मनीष तिवारी ने इस सिंपल स्टोरी में एक अलग ट्विस्ट भी पेश किया है जिसे आप परदे पर देख चौंक जाएंगे यह ट्विस्ट यह है कि हम सब ने एक जानवर होता है, अगर आप ने किसी भी चैलेंज में विजय प्राप्त करनी है तो अपने अंदर के जानवर को अपनी ताकत के रूप में प्रयोग करना होगा

फिल्म की कहानी फुटबॉल खेल को कही न कही बढ़ावा देने का काम करती हैं, ना जाने क्यों मनीष ने इस स्टोरी के साथ भ्रष्ट नेता , बिल्डर माफिया का मुद्दा क्यों जोड़ा है । रवि किशन फिल्म में एक दो दृश्य में नज़र आते है अन्य कलाकारों में मुझे प्रशांत नारायण की एक्टिंग सबसे ज्यादा प्रभावशाली लगी राजेश्वरी सचदेवा, गोविंद नामदेव, अंजन श्रीवास्तव, मिलिंद जोशी आदि ने अपने अपने किरदारो को निभा भर दिया ।

क्यों देखें

अगर आप फैमिली के साथ साफ सुथरी और एक मैसेज देती फिल्मों के शौकीन है तो आप चिड़ियाखाना देखने जाए और हां ऐसी फिल्मों को सरकार को हर राज्य में टैक्स फ्री तो करना ही चहिए
कलाकार: ऋत्विक साहोर , गोविंद नामदेव, अवनीत कौर , प्रशांत नारायण, राजेश्वरी सचदेवा , अंजन श्रीवास्तव और विशेष भूमिका में रवि किशन
डॉयरेक्टर , राइटर: मनीष तिवारी, निर्माता:
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी)
सेंसर सार्टिफिकेट, यू ए,

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