हल्द्वानी। आखिरकार कांग्रेस ने अपने नए प्रदेश अध्यक्ष और सदन में नेता प्रतिपक्ष और उपनेता की घोषणा कर ही दी। चौंकाने वाली बात ये है कि अब तक उत्तराखंड में राज करने वाले किसी भी दल (भाजपा-कांग्रेस) के तय मानकों के विपरीत कांग्रेस ने ये फैसला लिया है। आमतौर पर पार्टियां उत्तराखंड में कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के संयोजन को ध्यान में रखतीं हैं लेकिन कांग्रेस ने इस बार पूरी तरह कुमाऊं को तवज्जो दी है। जानकारों का मानना है कि कुमाऊं में इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के मद्देनजर ऐसा किया गया है, लेकिन ये भी आशंका जताई जा रही है कि इससे आने वाले दिनों में कांग्रेस को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश में विधान सभा की 70 सीटों में से 19 सीटों पर जीत हासिल हुई। इनमें गढ़वाल की आठ और कुमाऊं की 11 सीटें शामिल हैं। यानी कुमाऊं में कांग्रेस का प्रदर्शन गढ़वाल के मुकाबले बेहतर रहा। हो सकता है इसी को ध्यान में रखते हुए कुमाऊं मंडल पर हाईकमान की नजरेइनायत हुई हो। यहां बाजपुर से विधायक बने कांग्रेस में वापसी करने वाले यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया तो उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी को बनाया गया है, जिन्होंने खटीमा से दो बार के विधायक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पराजित किया।
प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी कांग्रेस ने कुमाऊं के ही रानीखेत से विधायकी का चुनाव हारे करन माहरा की ताजपोशी की है। करन माहरा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले हैं। यशपाल आर्य भी हरीश रावत गुट के हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि हरीश रावत भले ही चुनाव हार गए हों और प्रदेश में कांग्रेस की नैया को पार न लगा पाए हों लेकिन हाईकमान का विश्वास उन पर बना हुआ है। पदों के बंटवारे में एक बार फिर से उन्होंने बाजी मार ली है। विरोधी प्रीतम सिंह खेमे को चित कर उन्होंने अपने चहेतों को प्रमुख पद नवाजने में सफलता हासिल की है