दिल्ली में राष्ट्रपति शासन का कारण न बन जाए ये चुनाव, एलजी का रूख दे रहा स्पष्ट संकेत
नई दिल्ली। दिल्ली में महापौर चुनाव क्या राष्ट्रपति शासन की वजह बन सकते हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि उपराज्यपाल ने स्पष्ट कर दिया है कि या तो सीएम सलाह देकर फाइल महापौर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी फाइल भेजें।
अब ऐसे में जेल से सरकार चलाने पर अड़ी आम आदमी पार्टी के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इसके लिए या तो कोर्ट से कोई निर्णय हो या फिर सीएम जेल से बाहर आने के बाद इस पर निर्णय ले, तब ही दिल्ली को नया महापौर मिल सकता है।
राष्ट्रपति शासन के बाद ही एलजी ले सकते हैं फैसला
अगर, सीएम जेल से बाहर नहीं आते हैं और कोर्ट से भी इस मुद्दे का समाधान नहीं निकलता है तो संभवत: यह प्रक्रिया तब ही एलजी स्वयं पूरी कर सकते हैं जब दिल्ली में चुनी हुई सरकार न हो। ऐसा तब ही हो सकता है, जब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा हो।
विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली में महापौर चुनने का यह तीसरा वर्ष है और महापौर का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। ऐसे में इस पद पर सामान्य श्रेणी के महापौर के कार्यकाल को ज्यादा दिनों तक विस्तार नहीं दिया जा सकता है।
एलजी के रुख से हो रहा स्पष्ट: अनिल गुप्ता
दिल्ली नगर निगम के पूर्व मुख्य विधि अधिकारी अनिल गुप्ता बताते हैं कि एलजी के रुख से स्पष्ट है कि वह जब तक पीठासीन अधिकारी नियुक्त नहीं करेंगे, तब तक की सीएम इसमें सलाह न दे दें। लेकिन, यह रुख सही है या गलत है, इसका निर्णय कोर्ट कर सकता है। क्योंकि मनोनीत सदस्यों के चयन में उपराज्यपाल ने सीएम की सलाह की जरूरत से इनकार किया था। अब एलजी पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति के लिए सीएम की सलाह को जरुरी बता रहे हैं।
गुप्ता ने कहा कि एमसीडी में महापौर पद में तीसरे वर्ष के लिए चुनाव होना है। ऐसे में यह पद इस वर्ष अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है इसलिए अनुसूचित जाति के पार्षद को इस वर्ष ही महापौर बनाना होगा नहीं तो यह एमसीडी एक्ट का सीधे तौर पर उल्लंघन होगा।
राष्ट्रपति शासन को मिलेगी ठोस वजह: अनिल गुप्ता
उन्होंने कहा कि एमसीडी एक्ट का उल्लंघन रोकने के लिए जरुरी है कि पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति हो। यह तब ही होगी जब सीएम जेल से बाहर आकर फाइल साइन करें। या फिर कोर्ट इसमें कुछ दिशा-निर्देश जारी करें।
अगर, कोर्ट से इसका रास्ता नहीं निकलता है तो एलजी को दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की ठोस वजह मिल जाएगी। पहले से ही तीन हजार फाइलें दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास लंबित है। इससे लग रहा है कि दिल्ली में संवैधानिक संकट बढ़ रहा है। इस संकट को टालने के लिए एलजी ठोस निर्णय ले सकते हैं।
कैसे जाती है फाइल उपराज्यपाल के पास
- निगम सचिव – कमीश्नर को यह फाइल भेजते हैं।
- निगम कमीश्नर- शहरी विभाग के सचिव को फाइल भेजते हैं
- शहरी विकास विभाग के सचिव- मुख्य सचिव को फाइल भेजते हैं
- मुख्य सचिव – शहरी विकास विभाग के मंत्री को फाइल भेजते हैं
- शहरी विकास विभाग के मंत्री- मुख्यमंत्री को यह फाइल भेजते हैं
- मुख्यमंत्री – उपराज्यपाल को यह फाइल भेजते हैं।
एलजी के फैसले की कांग्रेस ने भी की निंदा
प्रदेश कांग्रेस एमसीडी प्रभारी जितेद्र कुमार कोचर ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित महापौर और उप महापौर चुनाव की चुनाव आयोग द्वारा मंजूरी के बावजूद वोटिंग पर एलजी द्वारा रोक लगाने को संवैधानिक मूल्यों का हनन बताया है। उन्होंने कहा कि यह दिल्ली के अनुसूचित जाति समाज का अपमान है।
कोचर ने कहा कि दिसंबर 2022, जब से नगर निगम में भाजपा का शासन खत्म हुआ है, हर बार महापौर चुनाव में भाजपा की औछी राजनीति और स्वयंभू बने रहने की सोच के कारण अड़चनें आ रही हैं। पिछले दो वर्षो से निगम में स्थायी समिति, जोन व वार्ड कमेटियों का गठन तक नही हो पाया है।
आप ने बताया बीजेपी को एससी विरोधी मानसिकता
वरिष्ठ पार्टी नेता और आप सरकार में मंत्री आतिशी का कहना है कि एमसीडी एक्ट के अनुसार, एमसीडी के तीसरे साल में महापौर का पद अनुसूचित जाति के पार्षद के लिए आरक्षित होता है। इस बार महापौर का चुनाव रद कर भाजपा ने अपनी अनुसूचित जाति विरोधी मानसिकता दिखा दी है।
आप के एमसीडी प्रभारी दुर्गेश पाठक ने कहा कि एलजी साहब चुनाव रद करने का कारण बता रहे हैं कि वो मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करते हैं। इसमें सीएम की इजाजत नहीं मिली है। इससे पहले सीएम ने दिल्ली के हक में हजारों सलाह दी हैं, पर एलजी साहब ने आज तक उस पर काम नहीं किया।