अमेरिका का दिवालिया होना छोड़िए, यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी में आई मंदी, इधर भारत की सबसे तेज ग्रोथ
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में मंदी ने दस्तक दे दिया है. दरअसल जर्मनी की इकोनॉमी बीते कुछ सालों से मंदी के आहट की मार झेल रही है. अब जो जीडीपी के आंकडें सामने आए हैं. उसे देखकर ये साफ कहा जा सकता है कि जर्मनी मंदी की चपेट में आ चुका है. सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी की जीडीपी में लगातार दो तिमाही से गिरावट है.
साल 2023 की पहली तिमाही में जर्मनी की इकोनॉमी ने निगेटिव ग्रोथ दर्ज की है. गुरुवार को जारी हुए तिमाही आंकड़ों के मुताबिक साल की पहली तिमाही में जर्मनी की जीडीपी 0.3 फीसदी सिकुड़ गई है. इससे पहले साल 2022 की चौथी तिमाही में जर्मनी की जीडीपी 0.5 फीसदी सिकुड़ी थी. जब कभी भी किसी इकोनॉमी में लगातार दो तिमाहियों तक निगेटिव ग्रोथ दर्ज होती है, तो उसे मंदी माना जाता है.
महंगाई का भार नहीं झेल पा रही जनता
जर्मनी में महंगाई का जो आलम है उससे आम जनता त्रस्त हो चुकी है. दरअसल रुस की तरफ से एनर्जी सप्लाई की वार्निंग के बाद महंगाई बढ़ती ही जा रही है. हाउसहोल्ड सामानों के उपभोग में 1.2 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. जर्मनी की इकोनॉमी एक्सपोर्ट पर टिकी हुई है लेकिन कोरोना के समय से इसमें भारी गिरावट दर्ज की गई. कोरोना की मार से जर्मनी अबतक नहीं उभर पाया. हालांकि थोड़ी बहुत राहत लॉकडाउन खत्म होने के बाद जरूर देखी गई लेकिन वो उंट के मूंह में जीरा वाली कहावत साबित हुई.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर संकट
जर्मनी की दूसरी सबसे बड़ी ताकत थी वहां की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर. जर्मनी का यह सेक्टर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. जिसका असर इकोनॉमी पर साफ दिख रहा है. बैंकों के मुताबिक कच्चे माल की कमी और कामगार का मिलना मुसीबतों को और बढा रहा है. जर्मन सेंट्रल बैंक के मुताबिक 2021 के आखिरी दौर में हालात कुछ बेहतर जरूर हुए थे लेकिन 2022 के आकड़ों ने इन बेहतरी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
यूक्रेन संकट का भी दिखा असर
मैन्युफैक्चरिंग, महंगाई, कोरोना से पहले ही जर्मनी त्राहिमाम कर रहा था. रही सही कसर रुस-यूक्रेन ने पूरी कर दी. दरअसल जर्मनी की इकोनॉमी में 100 से भी ज्यादा ऐसे सेक्टर थे जो रुस को काफी मात्रा में माल और सेवाएं देते थे. लेकिन रुस-यूक्रेन वार ने सारा काम खराब कर दिया. वहीं जर्मनी की गैस सप्लाई भी काफी हद तक रुस पर ही निर्भर है. रुस-यूक्रेन वार ने यहां भी पलीता लगाने का काम कर दिया.