ग्रेटर नोएडादिल्ली/एनसीआर

रबी की फसलों को कीट रोग से बचाने के उद्देश्य से जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने जारी की एडवाइजरी

ग्रेटर नोएडा संवाददाता, जिला कृषि रक्षा अधिकारी गौतमबुद्धनगर ने जनपद के किसान भाइयों का आह्वान करते हुए उन्हें जानकारी दी है कि आलू एवं राई/सरसों की फसलों में तापमान में कमी एवं आद्ता में वृद्धि के कारण आलू की फसल में अगेती / पछेती झुलसा एवं राई / सरसों में माहू के प्रकोप की सम्भावना बढ़ गयी है। उक्त रोगों / कीटों से बचाव के लिए निम्न एडवाइजरी जारी की जा रही है। किसान एडवाइजरी के अनुसार अपनी फसलों की उक्त रोगों / कीटों से बचाव करना सुनिश्चित करें। आलू में अगेती झुलसा – आरम्भ में इस रोग के लक्षण निचली एवं पुरानी पत्तियों पर छोटे-छोटे अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसका प्रभाव पत्तियों और कन्द दोनों पर पड़ता हैं। प्रभावित कन्दो में धब्बे के नीचे का गूदा एवं शुष्क हो जाता है। पछेती झुलसा-यह आलू की फसल में लगने वाला भयानक रोग हैं। इसका प्रभाव पौधो की पत्तियों पर एवं कन्दो पर होता है। बदलीयुक्त मौसम 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान एवं 80 प्रतिशत से अधिक आपेक्षित आर्द्धता की दशा में बीमारी की सम्भावना बढ़ जाती है। उपरोक्त दोनो रोगों से बचाव के लिए मैन्कोजेब 75 प्रति डब्लूपी 2 से 2.5 किलोग्राम अथवा कॉपर आक्सी क्लोराइड 50 प्रतिशत,डब्लूपी 2 से 2.5 किलोग्राम मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।राई / सरसों में माहू कीट- इस कीट के शिशु कीट एवं प्रौढ़ कीट पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं जो कोमल तनो, पत्तियों, फूलो एवं नयी फलियों के रस को चूसकर कमजोर कर देती हैं। माहू कीट मधुश्राव भी करते है। जिस पर काली फफूँद उग जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन होती है एवं पौधे को पर्याप्त भोजन नही मिल पाता है, जिससे फसल कमजोर हो जाती है। इस कीट से बचाव के लिए जैव कीटनाशी एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ईसी की 2.5 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि रसायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी, आक्सीडेमेटान मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी अथवा क्लोरोपाइरीफाॅस 20 प्रतिशत ईसी की 1.0 लीटर मात्रा को 400-500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर छिड़काव करना चाहिए। इस कीट के नियंत्रण के लिए कीट की सघनता के अनुसार 10-15 यलो स्टिकी ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कम तापमान के कारण फसलों में पाले की सम्भावना रहती है जिसके बचाव के लिए खेत में नमी बनाये रखने के उद्देश्य से हल्की सिचाई करें।

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