अपने डेबिट-क्रेडिट कार्ड को तुरंत Token में बदलिए, 30 सितंबर तक ही है मौका, ये 6 स्टेप्स करने होंगे फॉलो
नई दिल्ली। जैसे-जैसे कार्ड टोकेनाइजेशन की समय सीमा नजदीक आती जा रही है, इस बात को लेकर कयासों का सिलसिला भी तेज होता जा रहा है कि क्या आरबीआइ इस बार भी इसमें कोई रियायत देगा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से क्रेडिट और डेबिट कार्ड टोकेनाइजेशन की डेडलाइन 30 सितंबर तय की गई है। इसको लेकर तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं। पेमेंट फेल होने और दूसरे रेवेन्यू लॉस पर कुछ चिंताएं रहने के बाद भी केंद्रीय बैंक द्वारा शुक्रवार की समय सीमा बढ़ाए जाने की संभावना नहीं के बराबर हैं।
रायटर्स की एक रिपोर्ट की मुताबिक छोटे व्यापारियों द्वारा डेडलाइन बढ़ाए जाने की मांग के बावजूद, आरबीआइ ने अब तक इस बात का कोई संकेत नहीं दिया गया है कि कार्ड टोकेनाइजेशन की समय सीमा बढ़ाई जाएगी या नहीं। दरअसल बैंक, कार्ड सर्विस प्रोवाइडर और बड़े व्यापारी कार्ड के टोकेनाइजेशन के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं, इसलिए अनुमान यही है कि आरबीआइ 30 सितंबर की डेडलाइन नहीं बढ़ाएगा।
क्या है कार्ड टोकेनाइजेशन
टोकेनाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कार्ड डिटेल को एक यूनीक कोड या टोकन द्वारा बदल दिया जाएगा। ये टोकन एक एल्गोरिदम द्वारा जेनरेट होता है। इससे कार्ड की डिटेल डाले बिना ग्राहक ऑनलाइन खरीदारी कर सकेंगे। डाटा सुरक्षा में सुधार के लिए यह योजना बहुत महत्वपूर्ण है।
आरबीआइ ने पहली बार 2019 में कार्ड टोकेनाइजेशन के नियम पेश किए और कई बार डेड लाइन बढ़ाने के बाद भारत में सभी कंपनियों को 1 अक्टूबर, 2022 तक अपने सिस्टम में सहेजे गए क्रेडिट और डेबिट कार्ड डाटा को हटाने का आदेश दिया गया था।
सेव नहीं होगा कार्ड डाटा
टोकेनाइजेशन की व्यवस्था लागू होने के बाद छोटे व्यापारियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुछ व्यापारियों और बैंकरों को भी डर है कि टोकन के मानदंड लागू होने के बाद कार्ड से संबंधित लेन-देन में कुछ समय के लिए कमी आ सकती है। जानकारों का कहना है कि आमतौर पर देखा गया है कि जब भी इस तरह की कोई सिक्योरिटी लेयर बढ़ाई जाती है, कार्ड से होने वाला लेन-देन कम होने लगता है। इस बार ही यही चिंताएं हैं।
भुगतान के अलावा कई अन्य चीजें हैं, जिनका परीक्षण होना बाकी है। अगर कोई प्रोडक्ट लौटाया जाता है तो टोकेनाइजेशन के बाद उसके रिफंड का क्या होगा, इसको लेकर संदेह बना हुआ है, क्योंकि व्यापारियों के पास कार्ड का डाटा सेव नहीं होगा। भारत में जहां टोकेनाइजेशन को अनिवार्य कर दिया गया है, यूरोपीय देशों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। वहां सुरक्षा के लिए ग्राहकों को कार्ड के टोकन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
क्यों आया यह नियम
ऐसे समय में जब डिजिटल भुगतान 2026 तक 10 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, टोकेनाइजेशन को अनिवार्य बनाना उपभोक्ता हितों के लिए जरूरी है। केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार, कार्ड या इंटरनेट लेन-देन से संबंधित धोखाधड़ी बढ़ रही है। जानकारों के अनुसार, हो सकता है कि टोकेनाइजेशन को अपनाने में अधिक समय लगे और कुछ लोग नकदी में लेन-देन शुरू कर दें, लेकिन यह देखते हुए कि यह ऑनलाइन लेन-देन को अधिक सुरक्षित बनाता है, ग्राहक बिना किसी झिझक के इसे अपनाएंगे।