इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शत्रु संपत्ति मामले में सपा विधायक आजम खां की जमानत पर निर्णय किया सुरक्षित
सपा नेता आजम खां जेल से बाहर आएंगे या अभी वहीं रहेंगे, इस पर सस्पेंस गुरुवार को भी बरकरार रहा। उनकी जमानत पर गुरुवार को भी फैसला नहीं हो सका। शत्रु संपत्ति के मामले में उनकी जमानत को लेकर हाईकोर्ट में तीन घंटे तक दोनों तरफ से बहस हुई। दोपहर बाद 3.50 से शाम 6.42 तक चली बहस सुनने के बाद जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।
रामपुर के अजीमनगर थाने में फर्जी वक्फ बनाने व शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जा कर बाउंड्रीवॉल से घेरने का आरोप है। इस मामले में जमानत पर चार दिसम्बर 2021 को सुनवाई के बाद कोर्ट ने निर्णय सुरक्षित कर लिया था। उधर, आजम खान की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका पर आदेश सुरक्षित करने के बाद लंबे अरसे से फैसला नहीं सुनाया है। इस पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो मई की तारीख मुकर्रर की थी।
गत 29 अप्रैल को राज्य सरकार ने पूरक जवाबी हलफनामा दाखिल कर कुछ और नए तथ्य पेश किए, जिसके बाद गुरुवार को फिर सुनवाई हुई। आजम खान की जमानत के समर्थन में उनके अधिवक्ता इमरान उल्लाह का कहना था कि आजम खान के खिलाफ 89 मुकदमे दर्ज कराए गए हैं। उनमें से 88 में उन्हें जमानत मिल चुकी है। यह मुकदमा भी अन्य की तरह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण दर्ज कराया गया है। खास बात यह है कि जो इस मामले का मुख्य अभियुक्त है और जिसपर फर्जी इंद्रराज करने का आरोप है, उसकी जमानत हाईकोर्ट से मंजूर हो चुकी है।
इमरान उल्ला व कमरुल हसन सिद्दीकी ने आगे कहा कि इस मामले में लगाए गए आरोप सरासर झूठे व मनगढ़ंत हैं। रामपुर के जिलाधिकारी ने 18 जुलाई 2006 को 1700 रुपये प्रति एकड़ की दर पर 84 बीघा शत्रु संपत्ति का पट्टा मौलाना जौहर अली ट्रस्ट को किया था। वर्ष 2014 में कस्टोडियन ने पट्टा रद्द करते हुए जमीन बीएसएफ को दे दी। उन्होंने कहा कि 350 एकड़ जमीन पर बने जौहर विश्वविद्यालय की काफी जमीन सेलडीड से खरीदी गई है। कुछ जमीन सरकार ने पट्टे पर दी है। विवादित जमीन पर निर्माण नहीं है। 2019 में 13 हेक्टेयर जमीन को शत्रु संपत्ति का बताते हुए विवाद खड़ा किया गया है।
अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी व शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फरमान अहमद नकवी ने जमानत प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए कहा कि आजम खान ही इस मामले के मुख्य अभियुक्त हैं क्योंकि जो भी फर्जीवाड़ा किया गया, उसके बेनिफिशयरी आजम खान ही हैं। उन्होंने कहा कि आजम खान बेनिफिशयरी हैं और उन्होंने सबकुछ अपने लिए किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी ने अपनी बहस में कहा कि 1965 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान व चीन शत्रु देश घोषित कर दिए गए और जो लोग भारत छोड़कर पाकिस्तान में बस गए, उनकी यहां स्थित सम्पत्ति 1971 में शत्रु सम्पत्ति घोषित कर दी गई। इमामुद्दीन कुरैशी की सम्पत्ति भी उन्हीं में से एक है। 1369 फसली की खतौनी से स्पष्ट है कि यह वक्फ सम्पत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में आजम खान ने कैबिनेट मंत्री के पद का गलत इस्तेमाल करते हुए इमामुद्दीन कुरैशी की जमीन हड़पने के लिए वक्फ एक्ट के सारे प्रावधान ताक पर रख दिए। मामले के सह अभियुक्त व वक्फ बोर्ड में उस समय कार्यरत अधिकारी गुलाम सैयदन ने अपने हलफनामे में आजम खान की करतूत का खुलासा किया है।
उस अधिकारी ने हलफनामे में कहा है कि 18 नवम्बर 2003 को वह लखनऊ में इंदिरा भवन स्थित अपने कार्यालय पहुंचा तो तत्कालीन कैबिनेट मंत्री आजम खान ने उसे विधान भवन स्थित अपने चैंबर में बुलाया। वहां अपने चैंबर के अंदर वाले कक्ष ने आजम खान ने उसे चप्पल से मारा व धमकाया और एक आदमी को साथ भेजकर इंदिरा भवन स्थित ऑफिस से दो रजिस्टर जबरन मंगवाए। फिर अंदर वाले कक्ष में उन रजिस्टर पर निब और स्याही वाली कलम से फर्जी इंद्रराज कराया। मसूद खान नामक शख्स ने उस इंद्रराज की इबारत लिखी और बाद में उससे जबरन दस्तखत कराए गए।