राष्ट्रीय

‘पीड़ित को मिल सके न्याय, राज्य सरकारें दया याचिका पर जल्द करें फैसला’…सुप्रीम कोर्ट की नसीहत

सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिकाओं पर फैसले में हो रही देरी को लेकर राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को ऐसी याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला और निस्तारण करने का निर्देश देते हुए कहा कि दया याचिकाओं पर फैसले में हो रही अत्यधिक देरी का मौत की सजा पाए दोषी फायदा उठा रहे हैं।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा अंतिम निष्कर्ष के बाद भी दया याचिकाओं पर फैसला करने में बेतहाशा देरी हो रही है। इससे मौत की सजा का उद्देश्य विफल हो जाएगा। पीठ ने कहा, ‘इसलिए, राज्य सरकार या संबंधित अधिकारियों को सभी प्रयास करने चाहिए कि दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला किया जाए और उनका निपटारा किया जाए, ताकि आरोपी को भी अपने भविष्य का पता चल सके और पीड़िता को न्याय मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक महिला और उसकी बहन को सुनाई गई मौत की सजा को बदल दिया गया था। हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में इस आधार पर बदल दिया कि राज्य या राज्य के राज्यपाल की ओर से अभियुक्तों द्वारा दायर की गई दया याचिकाओं पर फैसला करने में असामान्य और अस्पष्ट रूप से देरी हुई थी और याचिका को लगभग सात साल और दस महीने तक लंबित रखा गया था।

एक निचली अदालत ने 2001 में कोल्हापुर में 13 बच्चों के अपहरण और नौ की हत्या के लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई थी, जिसकी पुष्टि 2004 में हाईकोर्ट ने की थी। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। बाद में, उनकी दया याचिकाओं को 2013 में राज्यपाल और बाद में 2014 में राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर दिया गया था।

हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के दौरान अपराध की गंभीरता पर विचार किया जा सकता है।हालांकि, दया याचिकाओं पर फैसले में अत्यधिक देरी को भी मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने के लिए संबंधित विचार कहा जा सकता है। पीठ ने कहा कि उपरोक्त मामले के मद्देनजर, हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।

भारत सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि आरोपी द्वारा किए गए अपराध की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट को मौत की सजा को बिना किसी छूट के जीवन भर के लिए आजीवन कारावास में बदलने का आदेश पारित करना चाहिए था। उनकी दलीलों को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने सजा को संशोधित किया और निर्देश दिया कि दोषियों को बिना किसी छूट के ताउम्र आजीवन कारावास की सजा काटनी होगी।

पीठ ने कहा कि हम उन सभी राज्यों या संबंधित अधिकारियों जिनके समक्ष दया याचिका दायर की जानी है और जिन्हें मौत की सजा के खिलाफ दया याचिका पर फैसला करना आवश्यक है, को निर्देश देते हैं कि ऐसी दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला किया जाए ताकि दया याचिकाओं पर फैसला करने में देरी का लाभ अभियुक्तों को नहीं मिले और अभियुक्त इस तरह के अत्यधिक देरी का फायदा न उठा पाएं।

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