ये है उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे हिमस्खलन की वजह, बढ़ने लगी वैज्ञानिकों की चिंता - न्यूज़ इंडिया 9
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ये है उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हो रहे हिमस्खलन की वजह, बढ़ने लगी वैज्ञानिकों की चिंता

केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के ठीक ऊपर एक बार फिर से एवलांच हुआ है. एवलांच होने का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल (Viral Video) हो रहा है. वायरल वीडियो में बहुत ही तेजी के साथ बर्फ का गुब्बारा आगे बढ़ रहा है. ये वीडियो हेलीकॉप्टर से लिया गया है और शनिवार सुबह का बताया जा रहा है. हालांकि प्रशासन का इस बारे में यह कहना है कि केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Temple) के पीछे आंशिक हिमस्खलन से हुआ है, जिसमें किसी भी प्रकार की जान-माल की क्षति नहीं हुई है. मगर पर्यावरणविद इसे भविष्य के लिए बड़ा खतरा बताकर चिंतित नजर आ रहे हैं.

नीचे आ रहा है बर्फ का गुब्बारा

बता दें कि केदारनाथ धाम में शनिवार सुबह करीब साढ़े पांच से छः बजे के बीच हिमस्खलन हुआ, जिसका वीडियो किसी ने हेलीकॉप्टर से बना दिया. यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. इससे पहले 22 सितम्बर की शाम साढ़े चार से पांच बजे के बीच केदारनाथ धाम के ठीक ऊपर एवलांच का वीडियो वायरल हुआ था, जिससे पूरे प्रशासन में हड़कंप मच गया था. एक बार फिर से हिमस्खलन का वीडियो देखने के बाद हर किसी के रौंगटे खड़े हो गए. वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि बर्फ का गुब्बारा तेजी के साथ नीचे की ओर आ रहा है. इस वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पर्यावरण विद इसे भविष्य के लिए अशुभ संकेत मान रहे हैं.

क्या कहा पर्यावरण विशेषज्ञ ने

पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेन्द्र बद्री ने कहा कि, हिमालयी पहाड़ियों में हिमस्खलन भू-वैज्ञानिकों के साथ ही पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय बन गया है. बर्फ का इतना तेजी से नीचे आना पर्यावरण असंतुलन को दिखा रहा है. उन्होंने कहा कि केदारनाथ हिमालय सेंसिटिव जोन में है. यह ऊंचा हिमालय है. केदारनाथ धाम में जो पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं, उनमें ब्लास्टिंग का प्रयोग किया जा रहा है. चोराबाड़ी ग्लेशियर पहले ही सेंसिटिव जोन है और इसके नीचे ब्लास्टिंग किया जाना, खतरनाक साबित हो रहा है. देव राघवेन्द्र ने बताया कि हिमालय में ग्लेशियर बेहद ही कमजोर होते हैं. यहां ब्लास्टिंग के बाद कंपन उत्पन्न होने से हलचल पैदा होती है. ग्लेशियर का अपना क्लाइमेट होता है. इसमें विखंडन आ गया है. ग्लोबल वार्मिंग होने के कारण हिमालय के ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है.

खतरे का इशारा-पर्यावरण विशेषज्ञ

पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा कि केदारनाथ धाम को आस्था के नजरिये के साथ ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी देखना पड़ेगा. हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. कहीं ना कहीं यह प्राकृतिक आपदा का कारण बन सकता है. उन्होंने कहा कि पर्यावरणविदों का मानना है कि केदारनाथ की पहाड़ियां सेंसिटिव हैं. यहां पर हलचल  पर्यावरण के लिए सही नहीं है. केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण के कार्य सही तरीके से नहीं किये जा रहे हैं. बुग्यालों के साथ ही कैचमेंट एरिया को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से दो बार केदारनाथ के पीछे की पहाड़ियों में हिमस्खलन हुआ है, यह भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे का इशारा है.

आपदा प्रबंधन अधिकारी ने क्या कहा

वहीं जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी नन्दन सिंह रजवार ने बताया कि, शनिवार सुबह साढ़े पांच से छः बजे के बीच केदारनाथ मंदिर से छः से सात किमी पीछे अचानक हुए आंशिक हिमस्खलन से किसी भी प्रकार के जान-माल की क्षति नहीं हुई है. केदारनाथ धाम में बह रही मंदाकिनी और सरस्वती नदी के जल स्तर में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है. घटना को देखते हुए केदारनाथ धाम में मौजूद एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस बल और डीडीआरएफ टीम के साथ ही यात्रा में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों को सचेत रहने को कहा गया है. वर्तमान में स्थिति सामान्य है और यात्रा सुचारू रूप से संचालित हो रही है.

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