राष्ट्रीय

SCs/STs को पदोन्नति में आरक्षण मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सरकारी नौकरियों (Government Jobs) में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण (Reservation in Promotion) देने के मुद्दे पर आज अपना फैसला सुनाएगी. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने विषय में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों की ओर से पेश हुए अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुना है.

केंद्र ने पीठ से कहा था कि यह सत्य है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी एससी/एसटी समुदाय के लोगों को अगड़े वर्गों के समान मेधा के स्तर पर नहीं लाया गया है. वेणुगोपाल ने दलील दी थी एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप ‘ए’ श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है और वक्त आ गया है कि रिक्तियों को भरने के लिए शीर्ष न्यायालय को एससी, एसटी तथा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के वास्ते कुछ ठोस आधार देना चाहिए. पीठ ने 26 अक्टूबर 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

वेणुगोपाल ने कहा था, ‘हम तब तक सीटें नहीं भर सकते जब तक योग्यता का मापदंड न हो लेकिन एक वर्ग है जिसे सदियों से मुख्यधारा से दरकिनार कर दिया गया है. ऐसे में, देश और संविधान के हित में, हमें समानता लानी होगी और वह मेरे विचार में आनुपातिक प्रतिनिधित्व है. यह समानता का अधिकार देता है. हमें एक सिद्धांत की जरूरत है जिस पर आरक्षण किया जाना है. यदि इसे राज्य पर छोड़ दिया जाता है, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि पर्याप्तता कब तुष्ट होगी? क्या अपर्याप्त है. यही बड़ी समस्या है.’ पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल हैं.’

अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि जहां तक एससी/एसटी का संबंध है, सैकड़ों वर्षों के दमन के कारण, उन्हें सकारात्मक कार्रवाई द्वारा, योग्यता के अभाव से उबरने के लिए समान अवसर देना होगा. इसके परिणामस्वरूप योग्यता के संबंध में छूट दी जा रही है, चयन के संबंध में अंकों के अपवाद और इसी तरह के उपाय ताकि वे शिक्षा में सीट प्राप्त कर सकें और नौकरियों की प्रकृति के कारण, वे सैकड़ों वर्षों से हाथ से मैला ढोने आदि जैसे काम कर रहे हैं. उन्हें अछूत माना जाता था और वे बाकी आबादी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे. इसलिए आरक्षण होना चाहिए.

वेणुगोपाल ने नौ राज्यों से एकत्र किए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि उन सभी ने बराबरी करने के लिए एक सिद्धांत का पालन किया है ताकि योग्यता का अभाव उन्हें मुख्यधारा में आने से वंचित न करे. देश में पिछड़े वर्गों का कुल प्रतिशत 52 प्रतिशत है. यदि आप अनुपात लेते हैं, तो 74.5 प्रतिशत आरक्षण देना होगा, लेकिन हमने कट ऑफ 50 प्रतिशत निर्धारित किया है. यदि शीर्ष अदालत आरक्षण पर फैसला मात्रात्मक आंकड़े और प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के आधार पर राज्यों पर छोड़ देगी तो हमनें चीजें जहां से शुरू की थी वहीं पहुंच जाएंगे. इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights