पुलिस को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत; हत्या का मामला बनाते समय अति उत्साह से बचें
पुलिस जांच के तौर तरीकों पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पुलिस अधिकारियों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। एक जांच अधिकारी से उम्मीद की जाती है कि वह हर पहलू को टटोलते हुए निष्पक्ष जांच करे, न कि अतिउत्साह में गैर इरादतन हत्या के केस में भी आरोपी के खिलाफ हत्या का मामला बनाने लगे। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में आरोपी सात लोगों को रिहा करने का आदेश दिया।
जांच अधिकारी को सजग रहने की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा, गैर इरादतन हत्या और हत्या के मामले में सजा की गंभीरता बदल जाती है। जांच अधिकारी को इसमें सजग रहने की जरूरत है। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह पहले तय करे कि मामला गैर इरादतन हत्या का है या सिर्फ हत्या का, क्योंकि सिर्फ हत्या के मामले में अपराध का इरादा निहित है।
अपने 42 पन्ने के आदेश में जस्टिस सुंदरेश ने कहा, जरूरी है कि जांच अधिकारी के सोचने के तरीके में एक व्यवहार्य परिवर्तन आए। क्योंकि बतौर पुलिसकर्मी वह इस कोर्ट का भी एक अधिकारी के तौर पर जांच कर रहा होता है। यह उसका कर्तव्य है कि वह सच्चाई का पता लगाए और सही निष्कर्ष तक पहुंचने में अदालत की मदद करे।
सुप्रीम कोर्ट हत्या के मामले में दोषियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। राजस्थान के एक भूमि विवाद में 18 जुलाई 1989 को लड्डूराम, मोहन और बृजेंद्र की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में दो सुनवाई हुईं। पहली में कोर्ट ने दो दोषियों को बरी किया और पांच को दोषी करार दिया।
इसके बाद हाईकोर्ट ने एक और दोषी को बरी कर दिया और शेष चार को सजा सुना दी। इसके बाद 10 और आरोपियों को इस मामले में शामिल किया गया ओर दूसरी बार फिर सुनवाई शुरू हुई। इस बार चार को सजा सुनाई गई और एक को जुवेनाइल बोर्ड के पास भेज दिया गया व शेष पांच को बरी कर दिया गया। हाईकोर्ट ने इस बार चारों को बरी कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बाकी के चार को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।