अपराधग्रेटर नोएडा

STF ने शुरू की इस खास वजह की जाँच, जांच भूमिहीनों के नाम पर सरकारी जमीन लेकर सरकार को ही बेची

ग्रेटर नोएडा के चिटहेरा गांव में अरबों रुपये की सरकारी जमीन दलितों और भूमिहीनों के नाम पर हड़पकर प्राधिकरण को बेचने का खुलासा हुआ है। इसमें भूमाफिया और दादरी तहसील के कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है। लखनऊ के उच्च अधिकारियों की ओर से मामले की जांच एसटीएफ को सौंपी गई है। इस मामले में कई नेताओं के शामिल होने का अंदेशा है।

गाजियाबाद के लोनी निवासी एक व्यक्ति ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से शिकायत की। शिकायत में बताया कि चिटहेरा गांव में दलितों और भूमिहीनों के नाम पर पट्टे आवंटित किए गए थे। इसके बाद तहसील के दस्तावेजों में हेरफेर किया गया। यह भी बताया कि किसी आवंटी को ग्राम पंचायत ने आधा बीघा जमीन दी थी, जबकि दस्तावेजों में उनके नाम कई-कई बीघा जमीन कर दी गई।

इसके बाद माफिया और नेताओं ने दूसरे जिलों के लोगों को चिटहेरा का मूल निवासी बताकर रजिस्ट्री करवा दी। बाद में सरकारी जमीन का ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से करोड़ों रुपये का मुआवजा उठा लिया। इसमें दादरी तहसील के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है। उन्हीं की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया।

लखनऊ से आए आदेश तो शुरू हुई जांच

एसटीएफ नोएडा के डिप्टी एसपी राजकुमार मिश्रा ने बताया कि इस मामले की शिकायत लखनऊ में उच्च अधिकारियों से की गई थी। शिकायत में चिटहेरा गांव में अरबों रुपये की सरकारी जमीन हड़पने की बात बताई गई है। उच्च अधिकारियों के आदेश के बाद नोएडा एसटीएफ के डीसीपी देवेंद्र सिंह ने जांच शुरू कर दी है। इस मामले में साक्ष्य जुटाने शुरू कर दिए हैं।

संगठन हाईकोर्ट जाएंगे

जानकारों का कहना है कि इस घोटाले में करीब 1000 बीघा जमीन इधर-उधर की गई है। इस मामले की गहराई से जांच होगी तो इसमें कई अधिकारी और नेता फंसेंगे। इस घोटाले को संगठित तरीके से अंजाम दिया गया। अब इस मामले को लेकर सामाजिक संगठन हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर ठीक ढंग से जांच और कार्रवाई नहीं हुई तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।

नोटबंदी के दौरान इस घोटाले के काम तेज हुए थे

बताया जाता है कि नोटबंदी के दौरान इस घोटाले का काम तेजी से हुआ है। कुछ लोगों को फर्जी ढंग से चिटहेरा का निवासी बताया गया। ये लोग अनुसूचित जाति से हैं। इससे चिटहेरा के दलितों को सरकार से पट्टों पर मिली जमीन इन लोगों के नाम खरीदना आसान हो गया। इसके बाद रद्द किए जा चुके पट्टे मिलीभगत करके बहाल करवाए गए। सूत्र बताते हैं कि गांव के दलितों को जो पट्टे दिए गए थे, उन पर माफिया ने कब्जा कर लिया था। इसका विरोध हुआ तो फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए गए। दबाव बनाकर उन से अनुबंध कर लिया गया। इस मामले की शिकायत कई बार हुई, लेकिन इस पर कोई जांच या कार्रवाई नहीं हो पाई है।

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