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भ्रष्‍टाचार का केस खारिज कराने कोर्ट पहुंचे प्रो व‍िनय पाठक, फैसला 15 को

आगरा यूनिवर्सिटी में टेंडर के बदले कमीशनखोरी का मामले में फंसे प्रोफेसर विनय पाठक की याचिका पर गुरुवार को सुनवाई पूरी हो गई है. अब 15 नवंबर को हाईकोर्ट फैसला सुनाएगी. दरअसल, कानपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति विनय पाठक ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए दाखिल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश के शिक्षा जगत में विनय पाठक चर्चित नाम है. वे इस समय कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज युनिवर्सिटी के कुलपति हैं. विनय पाठक को एक ऐसे शख्स के तौर पर माना जाता है जिसने जो चाहा वह किया. उन्होंने असंभव को संभव बनाकर काम किए. लेकिन अब विनय पाठक की कमीशन खोरी के चर्चे उत्तर प्रदेश के ब्यूरोक्रेसी से लेकर पुलिस की जांच का हिस्सा बन गए हैं.

क्या है पूरा मामला

यह पूरा मामला आगरा के डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में हुए प्रिंटिंग वर्क में कमीशन से जुड़ा है. इंदिरा नगर थाने में एफआईआर दर्ज करवाने वाले डिजिटल टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मालिक डेविड एम डेनिस ने आरोप लगाया कि उनकी कंपनी 2014 से एग्रीमेंट के तहत आगरा विश्वविद्यालय में प्री और पोस्ट एग्जाम का काम करती है. विश्वविद्यालय के एग्जाम पेपर छापना, कॉपी को एग्जाम सेंटर से यूनिवर्सिटी तक पहुंचाने का पूरा काम इसी कंपनी के द्वारा किया जाता रहा है. साल 2019 में एग्रीमेंट खत्म हुआ तो डिजिटेक्स टेक्नोलॉजी ने यूपीएलसी के जरिए आगरा विश्वविद्यालय का काम किया.

साल 2020 से 21 और 21- 22 में कंपनी के द्वारा किए गए काम का करोड़ों रुपये बिल बकाया हो गया था. जनवरी 2022 में अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के कुलपति का चार्ज विनय कुमार पाठक को मिला तो उन्होंने बिल पास करने के एवज में कमीशन की मांग की. आरोप है कि एफआईआर दर्ज कराने वाले डेविड डेनिस ने फरवरी 2022 में कानपुर स्थित विनय पाठक के सरकारी आवास पर मुलाकात की और जहां पर 15 फीसदी कमीशन की डिमांड रखी गई.

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