राष्ट्रीय

सजा में शामिल नहीं होगी कैदी के पैरोल की अवधि: Supreme Court

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि किसी कैदी की समय पूर्व रिहाई पर विचार करते समय उसे दी गई पैरोल की अवधि को सजा से बाहर रखा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार की पीठ ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि यदि सजा में पैरोल की अवधि शामिल किया जाता है तो प्रभावशाली कैदी कई बार पैरोल ले सकता है। और यदि कैदियों को यह सुविधा दी जाती है तो यह वास्तविक कारावास के उद्देश्य को विफल कर सकता है।

पीठ ने कहा, ‘हमारा दृढ़ मत है कि वास्तविक कारावास पर विचार करने के दौरान पैरोल की अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए। हम उच्च न्यायालय द्वारा इस पर रोक लगाने के दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं। शीर्ष अदालत उम्रकैद की सजा काट रहे कुछ दोषियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

सभी याचिकाकर्ताओं ने 2006 के नियमों के तहत समय से पहले रिहाई के लिए आवेदन किया था और राज्य दंड राजस्व बोर्ड ने उनकी समय-पूर्व रिहाई की सिफारिश की थी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights