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गर्भपात को लेकर केरल हाई कोर्ट का अहम फैसला, पति से अलग हुई पत्नी को एबोर्शन के लिए अनुमति की जरूरत नहीं

केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि अगर कोई प्रेग्नेंट महिला अबॉर्शन कराना चाहती है, तो उसे ऐसा करने के लिए अपने पति की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत महिला को अबॉर्शन करने के लिए अपने पति की अनुमति लेनी पड़े. इसका कारण ये है कि महिला ही गर्भावस्था और प्रसव के दर्द और तनाव को सहन करती है.

कोर्ट ने यह आदेश कोट्टायम की एक 21 वर्षीय युवती की ओर से दायर याचिका पर सुनाया. इसमें युवती ने मेडिकल टर्म्स के अनुसार गर्भपात की अनुमति मांगी थी. गर्भवती महिला कानूनी रूप से तलाकशुदा या विधवा नहीं है.

क्या कहा कोर्ट ने?

न्यायमूर्ति वीजी अरुण ने कहा कि युवती  के अपने पति के साथ कोई रिश्ता नहीं है. क्योंकि युवती ने इस संबंध में अपने पति के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज की थी. इसमें कहा गया था कि युवती के पति ने उसके साथ रहने की कोई इच्छा नहीं दिखाई. लिहाजा कोर्ट ने माना कि यह उसके वैवाहिक जीवन में भारी बदलाव के समान है.

‘युवा पीढ़ी विवाह को बुराई के रूप में देख रही’

हाल ही में केरल हाईकोर्ट की पीठ ने तलाक के लिए पति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि युवा पीढ़ी विवाह को बुराई के रूप में देख रही है. पीठ ने कहा कि इसीलिए लिव-इन संबंध बढ़ रहे हैं. न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की पीठ ने तलाक की अर्जी पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की. पीठ ने कहा कि युवा पीढ़ी विवाह को बुराई के रूप में देख रही है. मुक्त जीवन का आनंद लेने के लिए लोग शादी के बंधन से बचते हैं और इसीलिए लिव-इन रिलेशन बढ़ रहे हैं.

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