चीन: क्या नौसेना, वायुसेना के मुकाबले पीएलए ग्राउंड फोर्स पीछे रह गई?
हांगकांग: चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानि पीएलए की थल सेना में करीब 9 लाख 75 हजार सक्रिय सैनिक हैं लेकिन चीन की वायु सेना और नौसेना के मुकाबले चीन की थल सेना काफी कमजोर नजर आ रही है और रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की सरकार ने अपनी थल सेना के विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। कम्युनिस्ट पार्टी ने जितना निवेश वायुसेना और थल सेना में किया है, उतना निवेश थल सेना पर नहीं किया है, लिहाजा अब जब चीन और भारत की सेना लद्दाख में आमने-सामने खड़ी है, तो चीन के पास प्रोपेगेंडा चलाने के अलावा कोई और विकल्प दिख नहीं रहा है।
चीन की थल सेना की कमजोरी का खुलासा
3 नवंबर को पेंटागन द्वारा प्रकाशित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना-2021 रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएलए ग्राउंड फोर्स ने 2020 तक मशीनीकरण तो कर लिया है, बावजूद इसके चीन की सेना कई बड़े मोर्चों पर फिसल रही है। फिर भी, अमेरिकी कांग्रेस में पेश रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, पीएलए के एयरफोर्स और नेवी के मुकाबले चीन की थल सेना आधुनिकीकरण के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। यह काफी चौंकाने वाली रिपोर्ट है, लेकिन इसके पीछे कारण भी हैं। पीएलए के भीतर लगभग 20 सालों में बड़े आधुनिकीकरण के प्रयास हुए हैं। जिसमें पीएलए का लक्ष्य तय किया गया है तो चीन के राष्ट्रपति और शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के अध्यक्ष शी जिनपिंग का ये सबसे महत्वपूर्ण उद्येश्य भी है।
2035 तक बनेगी विश्व की नंबर-1 सेना?
शी जिनपिंग किसी भी हाल में 2035 तक पीएलए को विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना बनाना चाहते हैं, खासकर पीएलए के थलसेना को 2049 तक विश्वस्तरीय सेना बनाना चाहते हैं, लेकिन मौजूदा हालात की बात करें, तो इंडियन आर्मी के मुकाबले पीएलए की थल सेना काफी कमजोर है। कई विश्लेषकों का मानना है कि, पीएलए आधुनिकीकरण की दिशा में काफी तेजी के साथ तो आगे बढ़ी है, लेकिन उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है। पीएलए के विशाल आकार को देखते हुए उसके लिए अपने पुराने उपकरणों को वापस लेने और इसे आधुनिक हथियारों के साथ बदलने में लंबा समय लगेगा। इसलिए, चीनी सेना के आधुनिकीकरण को “जल्दबाजी” कहना बेहतर होगा।
नवीनीकरण में लगेगा वक्त
चीन की सरकार ने पीएलए को इतना ज्यादा विशालकाय बना दिया है, कि उसमें बदलाव लाना इतना आसान अब रहा नहीं है। दरअसल, पीएलए के एक प्रमुख विशेषज्ञ और 1990 के दशक में बीजिंग और हांगकांग में एक पूर्व अमेरिकी रक्षा अताशे डेनिस ब्लास्को का अनुमान है कि, पीएलए के पास मौजूद 25 से 30 प्रतिशत टैंक, पैदल सेना से लड़ने वाले वाहन, तोपखाने अभी भी चीन की सेना के लिए उपयुक्त हैं लेकिन चीन को सोवियत युग के सभी हथियारों से छुटकारा पाने में अभी कई सालों का और वक्त लगेगा। ब्लास्को ने कहा कि, ”जितनी तेजी से वे नए उपकरण लगा रहे हैं, यह उनके विशाल बल के आकार के लिए पर्याप्त तेज नहीं है”।
टैंक बदलने में 20 साल लगे
रिपोर्ट के मुताबिक, पीएलए को थल सेना के लिए आधुनिक टाइप-96 और टाइप-99 टैंक बदलने में करीब 20 सालों से ज्यादा का वक्त लगा और ये प्रक्रिया साल 2018 में जाकर खत्म हुई है। और अगर उसमें आधुनिक टाइप-15 टैंकों को भी शामिल कर लिया जाए, तो उसके बाद भी पीएलए की थल सेना में करीब 60 प्रतिशत ही आधुनिक टैंक आ पाए हैं। इसका मतलब यह है कि करीब करीब रिटायर्ट हो चुके टाइप 59 टैंक ही चीन की सेना के पास भरे पड़े हैं। निश्चित रूप से, पीएलए उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है क्योंकि पिछले पांच या पीएलए ने अपने आप को और ज्यादा दलदल में धकेला है और संगठन के अंदर काफी ज्यादा भ्रष्टाचार ही हुए हैं और इसे बदलने के लिए साल 2016 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पांच पीएलए थिएटर कमांड का निर्माण किया। विश्लेषकों का कहना है कि, ”असल में पीएलए कितना शक्तिशाली है और पीएलए के पास कितनी क्षमता है, इसका पता तब तक नहीं चल सकता है, जब तक वो वास्तव में जंग के मैदान में ना हों”।
कई समस्याओं में घिरी है पीएलए
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीएलए में सुधार के लिए काफी देर हो चुकी थी। 2016 के बाद जब पूरी सेना बदल गई तो इसने अत्यधिक विकास के चरण में पीएलए सैनिकों को अत्यधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। विश्लेषक ब्लास्को बताते हैं कि, ”बदलाव की ये प्रक्रिया एक तरह से विधघटनकारी था”। परिवर्तन की प्रक्रिया में और सेना को संशोधित और अनुकूलित करने के लिए जवानों को एक हिस्से से दूसरे हिस्सों में ट्रांसफर किया गया और उन्हें एक काम से हटाकर दूसरे सैन्य काम में लगाया गया। जो टेक्निकल काम जानते थे, उनके हाथों में हथियार दिए गये। और करीब दो सालों तक सैनिकों को हद से ज्यादा परेशान किया गया। उसी समय पीएलए में पांच थिएटर कमांड का गठन किया गया और तब से लेकर अब तक चीन लगातार अपने सैन्य ढांचे में छेड़छाड़ कर रहा है और विश्लेषकों का अनुमान है कि, चीन में बदलाव की ये प्रक्रिया का काफी खतरनाक असर होने वाला है।