Uncategorized

ड्रग्स का कारोबार बिना रोक टोक जारी

विनीत नारायण
आए दिन देश में ऐसी अनेकों खबरें आती रहती हैं कि करोड़ों के मूल्य के नशीले पदार्थ पकड़े जाते हैं। इन पकड़ी गई ड्रग्स की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये ड्रग्स देश भर में वितरण के लिये ही आई हैं। पर ये कारोबार बिना रोक टोक जारी है। जबकि सिंगापुर में ड्रग्स के विरुद्ध इतना सख्त कानून है कि वहाँ ड्रग्स को छूने से भी ये लोग डरते हैं। कुछ वर्ष पहले एक फि़ल्म आई थी उड़ता पंजाब’, जिसमें दिखाया गया था कि प्रदेश सरकार की लापरवाही से पंजाब के घर-घर में मादक दवाओं का प्रयोग फैल गया है। जिसके चलते पंजाब कि पूरी युवा पीढ़ी तबाह हो रही है। जिनमें हर वर्ग के युवा शामिल हैं। गरीब-अमीर का कोई भेद नहीं। उस वक्त पंजाब में अकाली दल की सरकार थी, तो आम आदमी पार्टी ने सरकार को इस तबाही के लिए जि़म्मेदार ठहराकर अपना चुनाव अभियान चलाया। इधर पिछले दस वर्षों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर क्या ये सरकार दावे से कह सकती है कि दिल्ली में मादक पदार्थों की बिक्री सारे आम नहीं हो रही?

कुछ महीने पहले हरियाणा के सोनीपत में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्थानीय डिग्री कॉलेज के छात्रों को नशीली दवाओं के सेवन के विरुद्ध भाषण दे रहे थे। तभी एक छात्र ने उनसे पूछा कि हमारे कॉलेज के बाहर पान की दुकान पर नशीली दवाएँ रात-दिन बिकती हैं तो आपकी पुलिस क्या कर रही है? जब हर युवा को पता है कि उनके शहर में कहाँ-कहाँ नशीली दवाएँ बिकती हैं तो आपका पुलिस विभाग इतना नकारा कैसे है कि वो इन बेचनेवालों को पकड़ नहीं पाता। पुलिस अधिकारी निरुत्तर हो गये।

मेरे एक पत्रकार मित्र ने 1996 में मुझे बताया था कि देश के एक प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने के मुखिया के विरुद्ध मादक दवाएँ अवैध रूप से उत्पादन करने और अफगानिस्तान भेजने के आरोप पर उनकी जनहित याचिका सारे सबूतों के बावजूद दो दशकों से ठंडे बस्ते में पड़ी है। क्योंकि उस घराने के गहरे संबंध हर प्रमुख दल के बड़े नेताओं से हैं। सबको इस कांड का पता भी है। पर कोई कुछ नहीं करता।
उधर पिछले कुछ वर्षों से गुजरात के एक पोर्ट से बार-बार भारी मात्रा में नशीली दवाएँ पकड़ी जा रही हैं। पर इसके पीछे कौन है वो सामने नहीं आ रहा। आए दिन देश में ऐसी अनेकों खबरें आती रहती हैं कि करोड़ों के मूल्य के नशीले पदार्थ पकड़े जाते हैं। इन पकड़ी गई ड्रग्स की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये ड्रग्स देश भर में वितरण के लिये ही आई हैं। पर ये कारोबार बिना रोक टोक जारी है। जबकि सिंगापुर में ड्रग्स के विरुद्ध इतना सख्त कानून है कि वहाँ ड्रग्स को छूने से भी ये लोग डरते हैं। क्योंकि पकड़े जाने पर सज़ा-ए-मौत मिलती है, बचने का कोई रास्ता नहीं।

गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, भोपाल, अमृतसर और चेन्नई, यूपी के हापुड़ और गुजरात के अंकलेश्वर तक ड्रग्स तस्करों का नेटवर्क का भांडाफोड़ हुआ है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 13 दिनों में 13,000 करोड़ रुपये कीमत की कोकीन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक थाईलैंड मारिजुआना जब्त की। इतना ही नहीं 2004 से 2014 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 5,900 करोड़ रुपए था, जबकि 2014 से 2024 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 22,000 करोड़ रुपये है।

दूसरी तरफ़ दुनियाँ भर में दादागिरी दिखाने वाला अमेरिका जो ख़ुद को बहुत ताकतवर मानता है वहाँ ड्रग्स का खूब प्रचलन है। ज़ाहिर है ड्रग माफिया की पकड़ बहुत ऊँची है। यही हाल दुनियाँ के तमाम दूसरे देशों का है जहां इस कार्टल के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को दबा दिया जाता है या ख़त्म कर दिया जाता है। चाहे वो व्यक्ति न्यायपालिका या सरकार के बड़े पद पर ही क्यों न हो। सब जानते हैं कि इन नशीली दवाओं के सेवन से लाखों घर तबाह हो जाते है। औरतें विधवा और बच्चे अनाथ हो जाते हैं। बड़े-बड़े घर के चिराग बुझ जाते हैं। पर कोई सरकार चाहें केंद्र की हो या प्रांतों की इसके ख़िलाफ़ कोई  ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाती।

सनातन धर्म का बड़े तीर्थ जगन्नाथ पुरी हो या पश्चिमी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र गोवा, हिमाचल प्रदेश के पर्यटक स्थल कुल्लू, मनाली हो या धर्मशाला, भोलेनाथ की नगरी काशी हो या केरल का प्रसिद्ध समुद्र तटीय नगर त्रिवेंद्रम, राजधानी दिल्ली का पहाडग़ंज इलाक़ा हो या मुंबई के फार्म हाउसों में होने वाली रेव पार्टियाँ, हर ओर मादक दवाओं का प्रचलन खुले आम हो रहा है। आज से नहीं दशकों से। हर आम और खास को पता है कि ये दवाएँ कहाँ बिकती हैं, तो क्या स्थानीय पुलिस और नेताओं को नहीं पता होगा। फिर ये सब कारोबार कैसे चल रहा है? जिसमें करोड़ों रुपये के वारे न्यारे होते हैं।

नशीली दवाओं में प्रमुख हैं: अफीम, पोस्त और इनसे बनने वाली मॉर्फिन, कोडीन, हेरोइन या सिंथेटिक विकल्प मेपरिडीन, मेथाडोन। इनकी भारी लोकप्रियता का कारण है कि इनके सेवन से भय, तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। सदा असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहने वाले कलाकार और फिल्मी सितारों में ये इसीलिए जल्दी पैठ बना लेती हैं। इनमें से कुछ उत्पाद मेडिकल साइंस में भी चिकित्सा के लिये उपयोग किए जाते हैं। जैसे दर्द निवारक दवा बनाने के लिए।

पर इस छूट का गलत फ़ायदा उठाकर प्राय: दवा कंपनियाँ नशीली दवाओं के नेटवर्क का हिस्सा बन जाती हैं और अरबों रुपया कमाती हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस व्यापार को करने वाले न सिर्फ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि एक सामाजिक और नैतिक संकट को भी जन्म दे रहे हैं। ऐसे में यदि सरकार और संबंधित एजेंसियाँ सख़्ती नहीं दिखाएँगी तो ऐसे अपराध और अपराधी बढ़ते ही जाएँगे।
ये सब बंद हो सकता है अगर केंद्रीय और प्रांतीय सरकारें अपने कानून कड़े बनायें और उन्हें सख्ती से लागू करें। अगर हर जिले के पुलिस अधीक्षक को ये आदेश मिले कि उसके जिले में ड्रग्स की बिक्री होती पायी गयी तो उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा।फिर देखिए कैसे नशीली दवाओं का व्यापार बंद होता है। पर देश के जनता के हित में  ऐसा सोचने वाले नेता हैं ही कहाँ? अगर होते तो तपोभूमि भारत “उड़ता भारत कैसे बनती ?”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights