केंद्र ने तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ की याचिका पर सुनवाई का किया विरोध
कई बीजेपी राज्यों ने अंतर-धार्मिक विवाहों के कारण होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाए हैं. इसको लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. अब केंद्र सरकार ने एनजीओ की याचिका को लेकर सवाल उठाए हैं.
केंद्र सरकार ने आरोप लगाया है कि ये गैर सरकारी संगठन (NGO) ‘कुछ चुनिंदा राजनीतिक हित के इशारे पर’ अपने नाम का इस्तेमाल करने की अनुमति देता है. केंद्र ने कोर्ट को बताया कि वह दंगा प्रभावित लोगों की पीड़ा का फायदा उठाकर पैसा इकट्ठा करने का दोषी है.
संयुक्त सचिव ब्रह्म शंकर ने दिया हलफनामा
गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव ब्रह्म शंकर द्वारा दाखिल एक हलफनामे में कहा गया, “मैं बताना चाहता हूं कि याचिकाकर्ता सार्वजनिक हित में काम करने का दावा करता है लेकिन वह लोक हितों को परे रखकर अन्य उद्देश्यों के लिए विषयों को चुनता है.”
हलफनामे में कहा गया, “मैं कहना चाहता हूं कि न्यायिक कार्यवाही की एक श्रृंखला से अब यह स्थापित हो गया है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 कुछ चुनिंदा राजनीतिक हित के इशारे पर अपने दो पदाधिकारियों के माध्यम से अपने नाम का इस्तेमाल करने की अनुमति देता है और इस तरह की गतिविधि से कमाई भी करता है.”
जानबूझकर गुप्त रूप से…
केंद्र ने कहा कि उसने याचिकाकर्ता के इशारे पर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत किसी भी समान या अन्य राहत प्रदान किए जाने का विरोध करने के सीमित उद्देश्य के लिए केवल प्रारंभिक हलफनामा दायर किया है. हलफनामे में कहा गया, “मैं कहना चाहता हूं कि लोक हित की सेवा की आड़ में, याचिकाकर्ता जानबूझकर गुप्त रूप से धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर समाज को विभाजित करने के प्रयास में विभाजनकारी राजनीति करता है.”
असम में इस तरह की गतिविधि हो रही हैं
हलफनामे में कहा गया कि कानून का स्थापित सिद्धांत है कि संवैधानिक अदालत में याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि और साख पर गौर किया जाता है. केंद्र ने हलफनामे में अन्य राज्यों में याचिकाकर्ता संगठन की इसी तरह की गतिविधियों का आरोप लगाया और कहा कि वर्तमान में असम में इस तरह की गतिविधि हो रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ नए और विवादास्पद कानूनों का परीक्षण करने पर सहमति व्यक्त की थी, जो अंतर-धार्मिक विवाहों के कारण धर्म परिवर्तन को विनियमित करते हैं. उत्तराखंड के कानून में जबरन या प्रलोभन के जरिए धर्म परिवर्तन के दोषी पाए जाने वालों के लिए दो साल जेल की सजा का प्रावधान है. ये प्रलोभन नकद, रोजगार या भौतिक लाभ के रूप में हो सकता है.
एनजीओ की दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं क्योंकि वे राज्य को किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी पसंद के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता का दमन करने का अधिकार देते हैं.