क्या है बॉडी क्लॉक? जिसके लिए मिला चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार
नई दिल्ली। मनुष्य, पेड़-पोधौं, पशु-पक्षी सहित पृथ्वी पर मौजूद सभी सजीव वस्तुओं का अपना बॉडी क्लॉक होता है, जो प्राकृतिक घड़ी यानी सूरज के उगने और ढलने की गति के अनुसार संचालित होता है। प्रकृति के साथ शरीर के इस तालमेल को मेडिकल साइंस की भाषा में सर्काडियन रिदम कहा जाता है, जो व्यक्ति में कई तरह के शारीरिक-मानसिक बदलावों के लिए जिम्मेमदार होता है।
क्या है बॉडी क्लॉक?
बॉडी या बायोलॉजिकल क्लॉक की कार्यप्रणाली को कुछ इस ढंग से समझा जा सकता है कि सभी जीवों की संरचना में एक ऐसी सहज व्यवस्था होती है, जो उसकी सोने-जागने जैसी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का समय निर्धारित करती है। दरअसल मनुष्य सहित सभी जीव-जंतुओं के ब्रेन के हाइपोथेलेमस नामक हिस्से में लगभग 20,000 न्यूरॉन्स मौजूद होते हैं। ऑप्टिक नर्व से इन न्यूरॉन्स का सीधा संपर्क होता है और वहीं से इन्हें काम करने का निर्देश मिलता है। सुबह के समय सूरज की रोशनी से इनकी सक्रियता बढ़ जाती है। इसी वजह से सुबह होते ही व्यक्ति की नींद खुल जाती है, जबकि शाम के वक्त अंधेरा होने के बाद सभी को स्वाभाविक रूप से नींद की जरूरत महसूस होती है। हर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या के अनुसार निश्चित समय पर भूख लगती है। अगर किसी वजह से उस वक्त रास्ते में हो तो उसे बेचैनी महसूस होने लगती है। इसी तरह शरीर का पाचन तंत्र भी बॉडी क्लॉक से संचालित होता है। इसी वजह से सुबह सोकर उठने के बाद लोगों को चाय पीने या टॉयलेट जाने की जरूरत महससू होती है।
बॉडी क्लॉक बिगड़ने से सेहत पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव
अगर दिनचर्या बॉडी क्लॉक के विपरीत हो तो पाचनतंत्र पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है। मिसाल के तौर पर शरीर की घड़ी के अनुसार डिनर का समय शाम सात से आट के बीच होता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति देर रात को कुछ खाता है तो इससे उसका ब्रेन भ्रमित हो जाता है और वह पैंक्रियाज को भोजन पचाने वाले एंजाइम के सिक्रीशन का निर्देश नहीं देता। इससे पाचन क्रिया सही ढंग से काम नहीं कर पाती और शरीर में फैट का संग्रह होने लगता है, इससे व्यक्ति को ओबेसिटी की समस्या होती है। गलत वक्त पर खाने से शरीर में इंसुलिन नहीं बन पाता। अगर लंबे समय तक यही आदत अपनाई जाए तो डायबिटीज टाइप-2 का आशंका बढ़ जाती है।
रिसर्च से यह तथ्य सामने आया है कि लंबे समय तक अनियमित दिनचर्या अपनाने की वजह से कोशिकाओं में मौजूद जींस की संरचना में बदलाव आने लगता है, जिसे कैंसर के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है।
अगर आप शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो आपकी बॉडी क्लॉक की रिदम बिल्कुल सही होनी चाहिए, तो इसके लिए आप ऐसी नियमित दिनतर्या अपनाएं, जिसमें आपका सोना-जागना, एक्सरसाइज और भोजन बिल्कुल सही समय पर हो।