राष्ट्रीय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा,भारत माता के सच्चे सपूत, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की१२५वीं जयंती पर सादर श्रद्धांजलि।

सैनिक टोपी,चश्मा विशेष,
गणवेश लिए प्रतिमा किसकी?
यह तेजपुंज आभामंडल,
कह रहा आज महिमा किसकी?

है कौन यती यह पुण्यव्रती,
कर रहा साधना मौन धीर।
चिर विजय कामना लिए हुए,
उद्भट सेनानी अमर वीर।

देदीप्यमान आनन जिसका,
छविमान मूर्ति उन्नत ललाट।
अरविंद विवेकानंद संत सा,
वैचारिक चिन्तन विराट।

जानकीनाथ मां प्रभावती ,
का कुलदीपक मस्तक चन्दन।
जिसके उर आंगन में पलता,
भारत के जन जन का क्रन्दन।

जिसने अंग्रेजी सत्ता की सेवा,
का सुख आसन छोड़ा।
चुन लिया कंटकाकीर्ण पन्थ,
चिर वैभव सिंहासन छोड़ा।

जिसकी ओजस्वी वाणी से
सोयी तरुणाई जगती थी।
भारत के सूखे हाड़ों मेंं,
चिनगारी रोज सुलगती थी।

भारत मां का आजाद शेर,
पहरे पर छोड़ प्रशासन को।
निज वेश बदल काबुल पहुंचा,
दे गया चुनौती शासन को।

पेशावर मध्य रूस होकर,
जर्मन जिसका गन्तव्य रहा।
स्वाधीन बने मेरा भारत,
चिर संकल्पित मन्तव्य रहा।

जापान देश का साथ मिला,
जग पड़ी जवानी भारत की।
बन गई फौज आजाद हिन्द,
जो बनी कहानी भारत की।

सागर की लहरें झूम उठीं,
भारत माता भी मुस्काई।
ज्यों सिंह माद से निकल पड़े,
नवयुवकों ने ली अंगड़ाई।

माटी का कण कण बोल उठा,
आओ वीरो जयगान करो।
संकट में मातृभूमि अपनी,
हे आर्य पुत्र बलिदान करो।

जननी के पावन चरणों में,
ये शीश समर्पित कर दो तुम
मां काली का खाली खप्पर,
अब अरि शोणित से भर दो तुम।

ओ नौजवान साथी संभलो,
आजादी का है समर शेष।
बोला सुभाष,बन्दी है मां,
दे दो तन मन जीवन अशेष।

तुम मुझे खून दो मैं तुमको,
आजादी दुंगा ,बोल उठा।
सुन ओज-मन्त्र ,गूंजा दिगन्त,
भूमंडल सारा डोल उठा।

प्राणों के ज्वाल दीप रख दो,
यह अंधकार मंजूर नहीं।
बोलो जय हिन्द,चलो दिल्ली,
अब दिल्ली ज्यादा दूर नहीं।

उत्तुंग हिमालय की चोटी,
वह पुण्य भूमि हल्दीघाटी।
है आज पुकार रही तुमको,
बलिदानी पावन परिपाटी।

चन्दा सूरज धरती सागर,
तारे उजियारे नील गगन।
गंगा यमुना की धाराएं,
मलयाचल का उन्मुक्त पवन।

झरने सरिताओं का कल कल,
पर्वत पर्वत घाटी घाटी।
कहते सब जाग उठो वीरो,
अब जाग उठी भारत-माटी।

प्रमुदित होगी चिर निखिल सृष्टि,
सब गीत खुशी के गायेंगे।
जब लालकिले पर अमर तिरंगा
झंडा हम फहरायेंगे ।

स्वातन्त्र्य सूर्य इस धरती पर
निकलेगा पहली बार मित्र।
जन गण मन का सुख लौटेगा,
बदलेगा जग का मानचित्र।

जो स्वप्न तैरते आंखों में
उनको निश्चित आकार मिले।
कर्त्तव्य निभाते आये जो,
उनको समुचित अधिकार मिले।

आयुध उपकरण न संसाधन
पर उसने हिम्मत कब हारी।
जा चढ़ा फौज लेकर अपनी,
सरहद पंहुचा विप्लवकारी।

बर्मा , सिंगापुर तक पहुंचा,
बारूद तोप संगीन लिए।
साहस के बल पर निकोबार,
और अंडमान भी छीन लिए।

पर विधि ने कब स्वीकार किया,
उसका भी है अपना विधान।
छण भर को जैसे वक्त रुका,
झुक गया धरा पर आसमान।

विस्फोट हुआ परमाणुक बम,
जापान देश की हुई हार।
मानवता सिसक सिसक रोती,
करुणाप्लावित थी अश्रुधार।

ढल चला सूर्य,घिर गया तिमिर,
धीरे धीरे बढ़ चली रात।
लालिमा बिखेरे प्राची में,
मुस्काया पुनि मंजुल प्रभात।

सीमा से फौजें लौट चलीं,
निज वीरोचित अभिमान लिए।
माटी की पावन गन्ध लिए,
संकल्प लिए, अरमान लिए।

बोला सुभाष, है लक्ष्य निकट,
साथी तुम मत होना निराश।
इस वीर प्रसूता धरती मां,
की गोदी में अनगिन सुभाष।

अवसाद निराशा अन्धकार,
में एक किरण बाकी रहती।
जब तक है श्वास,शेष धड़कन,
बढ़ते रहना कहती रहती।

कब तटबंधों ने बांधा है,
सागर में उठते पानी को।
है कौन बांध सकता भारत,
की विप्लव तरुण जवानी को।

मैं रहूं रहूं या नहीं रहूं,
मां नहीं रहेगी पराधीन।
जलते दीपक की लौ से ही,
जलते असंख्य दीपक नवीन।

मां सोये केहरि जाग उठे,
है जाग उठा विश्वास नया।
तेरे प्रणवीर सपूत चले अब,
गढ़ने को इतिहास नया।

तन का दीपक,मन की बाती,
जल उठे करूं वन्दन तेरा।
पूजन अर्चन अभिषेक करुं,
मां,रक्त बने चन्दन मेरा।

तैयार खड़ा है वायुयान,
साथी,तत्पर ले जाने को।
आउंगा शीघ्र वचन मेरा,
तेरा वैभव लौटाने को।

ऊषा छलकाने वाली है,
आजादी का उज्जवल प्रकाश।
मै चलूं, सुनहली किरणों का,
कर लूं स्वागत, बोला सुभाष।

मां ने अन्तर आशीष दिया,
पल भर में ओझल थी काया।
घन गर्जन में दिप्ती दुरती,
चपला की ज्यों चंचल छाया।

डा०अखिलेश चन्द्र गौड़।

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