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Hambantota Port : श्रीलंका ने हंबनटोटा पोर्ट पर चीनी जहाज को जाने की मंजूरी दी, भारत ने कहा हम निगरानी करेंगे

कोलंबो: कंगाल हो चुके श्रीलंका को भारत ने करीब 4 अरब डॉलर की मदद सिर्फ इस साल जनवरी के बाद पहुंचाई है, बावजूद इसके भारत का ये पड़ोसी देश अहसानफरामोश निकला है और भारत के दुश्मन को भारत के पीठ में खंजर भोंकने के लिए अपने घर में बुला रहा है। भारत की चेतावनी के बाद भी श्रीलंका ने चीन के ‘जासूसी जहाज’ को अपने बंदरगाह पर रूकने की इजाजत दे दी है, जिसको लेकर भारत ने सख्त एतराज जताया है।

हंबनटोटा में चीनी जहाज

श्रीलंका सरकार ने चीन के जासूसी जहाज, जिसे चीन ने रिसर्च जहाज नाम दिया हुआ है, उसे अपने हंबनटोटा बंदरगार पर आने की इजाजत दे दी है, वो भी तह जब भारत ने श्रीलंका को इस तरह के कदम उठाने से परहेज करने को कहा था। इस तरह की रिपोर्ट जब पिछले हफ्ते आई थी, तो पहले श्रीलंका सरकार की तरफ से इसका खंडन करते हुए रिपोर्ट को अफवाह बताया था, लेकिन अब श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि कर दी है, कि हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का जहाज पहुंच रहा है। जबकि भारत की तरफ से श्रीलंका को ‘स्पष्ट संदेश’ दिया गया था, कि भारत ‘सावधानीपूर्वक निगरानी’ कर रहा है। वहीं, श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को पुष्टि की है, कि चीनी पोत ने दक्षिणी हंबनटोटा बंदरगाह पर अगस्त में आने की इजाजत मांगी है। श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय के मीडिया प्रवक्ता कर्नल नलिन हेराथ ने कहा कि, “जहाज 11 से 17 अगस्त तक हंबनटोटा में मुख्य रूप से ईंधन भरने और मेंटिनेंस के लिए रहेगा।”

भारत कर रहा है निगरानी

चीन का जो जहाज श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर 11 अगस्त से 17 अगस्त तक रहेगा, उसका नाम युआन वांग-5 है और चीन का कहना है, कि ये जहाज अंतरिक्ष और उपग्रह ट्रैकिंग जहाज है और अंतरिक्ष की गतिविधियों पर नजर रखता है। लेकिन, इस जहाज को लेकर नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था, कि ”भारत अपनी सुरक्षा और आर्थिक हित पर असर डालने वाले किसी भी डेवलपमेंट की सावधानीपूर्वक निगरानी करता है।” भारत के बयान के ठीक बाद समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया कि, चीन की तरफ से प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया कि, चीन को उम्मीद है कि ‘प्रासंगिक पक्ष’उसकी “वैध समुद्री गतिविधियों” में हस्तक्षेप करने से परहेज करेंगे। इस टिप्पणी ने संकेत दिया कि, चीनी पोत के आगमन से कोलंबो को एक बार फिर नई दिल्ली और बीजिंग के हितों के बीच फंसाया जा सकता है।

श्रीलंका ने पहले क्यों किया इनकार?

अब जबकि श्रीलंकन रक्षा मंत्रालय ने मान लिया है, कि अगस्त महीने में चीनी जहाज हंबनटोटा पोर्ट पर आएगा, तो श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि उसने पहले जहाज के आगमन से इनकार क्यों किया था। श्रीलंकन रक्षा मंत्रालय के प्रमुख कर्नल हेराथ ने कहा कि, “ऐसे जहाज समय-समय पर भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न देशों से आते हैं। यह कुछ भी असामान्य नहीं है।” हालांकि, कोलंबो और नई दिल्ली के बीच पिछले तनाव को देखते हुए, भू-रणनीतिक विश्लेषक इस डेवलपमेंट को करीब से देख रहे हैं, खास तौर पर कोलंबो ने 2014 में एक चीनी परमाणु-संचालित पनडुब्बी चांगझेंग 2 को अपने बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति दी थी, जिसपर भारत की तरफ से काफी सख्त प्रतिक्रिया दी थी। लेकिन, अब जबकि भारत ने दिल खोलकर श्रीलंका की मदद की है और चीन ने इस मुश्किल परिस्थिति में श्रीलंका को छोड़ दिया है, फिर भी श्रीलंका चीनी जहाज को अपने बंदरगाह पर आने की इजाजत दे रहा है।

हंबनटोटा पोर्ट का सैन्य इस्तेमाल

नई दिल्ली को चिंता है कि, चीन द्वारा निर्मित और लीज पर लिए गए हंबनटोटा बंदरगाह का इस्तेमाल चीन भारत के बैकयार्ड में सैन्य अड्डे के रूप में कर सकता है और 1.5 अरब डॉलर का बंदरगाह एशिया से यूरोप के लिए मुख्य शिपिंग मार्ग के नजदीक है, लिहाजा चीन इस मार्ग पर कंट्रोल करने के साथ साथ भारत पर सैन्य प्रेशर बना सकता है। Refinitiv Eikon के शिपिंग डेटा से पता चला है कि, अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत युआन वांग 5 हंबनटोटा के रास्ते में है और 11 अगस्त को ये श्रीलंका पहुंच जाएगा। ऐसे समय में जब श्रीलंका सात दशकों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। भारत ने अकेले इस साल अपने पड़ोसी देश को करीब 4 अरब डॉलर की मदद दी है।

हंबनटोटा बंदरगाह पर करेगा रिसर्च

वहीं, श्रीलंका की एक कंसल्टिंग फर्म, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव श्रीलंका ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि, युआन वांग 5 एक सप्ताह के लिए हंबनटोटा में रहेगा और “अगस्त और सितंबर के मध्य में हिंद महासागर क्षेत्र में, भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में, अंतरिक्ष ट्रैकिंग, उपग्रह नियंत्रण और अनुसंधान ट्रैकिंग का संचालन करेगा”। आपको बता दें कि, श्रीलंका ने औपचारिक रूप से अपने मुख्य दक्षिणी हंबनटोटा बंदरगाह में वाणिज्यिक गतिविधियों को 2017 में एक चीनी कंपनी को 99 साल के पट्टे पर सौंप दिया है। वहीं, चीन श्रीलंका के सबसे बड़े ऋणदाताओं में से एक है और उसने भारत को परेशान करते हुए श्रीलंका में हवाई अड्डों, सड़कों और रेलवे को भी वित्त पोषित किया है, और एक बार फिर से चीन श्रीलंका में अपनी खोई हुई जमीन को पाने की कोशिश कर रहा है। श्रीलंका ने 2014 में भारत को उस वक्त नाराज़ किया था, जब उसने एक चीनी पनडुब्बी और एक युद्धपोत को कोलंबो में डॉक करने की अनुमति दी थी।

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