राजनीती

भावी उम्मीदवारों का खेल

अजय शर्मा वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

जब चुनाव का लोकतांत्रिक महोत्सव आता है तब राजनीति के खिलाड़ियों की महत्वाकांक्षाए चरम पर पहुंच जाती हैं। इस साल देश में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराख्ंाड पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव हैं। सभी दलों में उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा चल रही है्र। सियासी गलियारों का माहौल बहुत गर्म है। चुनाव जीतने के लिए उठापटक चल रही है। जोड़ और गठजोड़ लगभग अपने अंतिम चरण में है। उम्मीदवार और वर्तमान विधायक भी अपनी अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं। एक-एक सीट पर लगभग दस से बारह दावेदार हैं। ऐसे में सवाल बनता है कि ये उम्मीदवार कहां से पैदा हो गए या फिर इतने उम्मीदवार क्यों। ऐसे लोगों के नाम भी सामने आए हैं जो राजनीति के अखाड़े में नये थे या फिर सिर्फ कार्यकर्ता की पहचान रखते थे। अब यहां पर प्रश्न यह बनता है कि एक सीट पर इतने भावी उम्मीदवार क्यों हैं। इसके पीछे का क्या खेल है।

उम्मीदवार का खेल समझने के लिए हमें राजनीति और सत्ता के प्रभुत्व को समझने का प्रयास करना होगा। राजनीति समाज और देश के विकास का जरिया माना जाता है। पहले लोग इस बड़े उददेश्य के साथ राजनीति में आया करते थे। लेकिन अब लोग व्यक्तिगत उददेश्यों के लिए राजनीति में आते हैं। इसलिए एक कार्यकर्ता जब गली मौहल्ले की राजनीति से लेकर जिले तक राजनीति करता है। तब कुछ सालों में वह इतना अनुभव ले चुका होता है कि वह कैसे सत्ता के गलियारे से अपना जीवन बदल सकता है। इसलिए वह चुनाव से पहले भावी उम्मीदवार की नाव पर बैठकर सत्ता के महल में पहुंचने की कोशिश करता है। यहां उसके कुछ मुख्य उददेश्य हो सकते है। जैसे वह अपना विधायक, सांसद, मंत्री स्तर पर अपना संपर्क बनाना चाहता है। ब्यूरोक्रेट से लेकर अफसरों के बीच अपना नेटवर्क बनाने की कोशिश, कुछ लोग चुनाव के दौरान अपनी दावेदारी बेचकर पैसा बनाने की कोशिश करते हैं। कुछ अपनी सोशल इंजीनियरिंग करना चाहते हैं। कुछ सिर्फ सोशल ब्राडिंग के जरिए अगले चुनाव की नींव रखना चाहते हैं। कुछ सोचते हैं कि जब जिले या प्रदेश की वर्किंग कमेटी बनेगी तो उन्हें उसमें स्थान मिल जाएगा। जिससे उन्हें अपना व्यापार करने में या फिर उसे बड़ा बनाने में आसानी होगी। यानि कि कुछ लोग राजनीति में या फिर भावी उम्मीदवार के खेल जरिए अपना व्यवसाय करने के लिए आते हैं। यानि कि राजनीति अब नेटवर्किग का टूल बन चुकी है। सभी के अपने अपने एजेंडे हैं। इसलिए भावी उम्मीदवार के खेल के भी अपने एजेंडे हैं। ऐसे में अब एक नया अलग सवाल बनता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे पॉलीटिशयन पर आम जनता कैसे भरोसा करे कि वास्तव में वे लोग समाज और देश के विकास के लिए राजनीति में हैं। कैसे ये लोग आम जनता को वोट डालने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यह भी एक कारण है मतदान प्रतिशत के कम होने की।

सियासत के खिलाड़ियों में भावी उम्मीदवारों और छोटे-मोटे पदाधिकारियों के अपने अपने उददेश्य है। जो स्वार्थ से भरे हुए हैं। यह स्वस्थ राजनीति के लिए शुभ नहीं है। पार्टियों को भी अपने ऐसे सदस्यों को अनुशासन में रखना चाहिए। लेकिन राजनीतिक पार्टियां भी इस भावी उम्मीदवार के खेल जरिए अपना हित साधने में लग जाती हैं। ये भावी उम्मीदवारों को टास्क दे देती हैं कि अपना दम खम दिखाओ। जिसम अपना हित देखती हैं। वे सोचती हैं कि अपनी मार्केटिंग करवा लो। अच्छी पब्लिसिटी हो जाएगी। जनता के बीच रैलियों और जनसभाओं को कामयाब बनाने के लिए भीड़ मिलेगी। जिससे पार्टी चुनाव जीतने के लिए माहौल बनाने में कामयाब होगी। कभी कभी पार्टियां भावी उम्मीदवार इसलिए भी उतारती है कि जब उसे परफेक्ट उम्मीदवार नही मिलता है। तब वह एक फेक भावी उम्मीदवार उतार देती है। कभी कभी पार्टियां उस स्थिति में भी भावी उम्मीदवार का खेल खेलती है जब उसे कोई उम्मीदवार नहीं मिलता। तब वह भावी उम्मीदवार मैदान में उतार देती है। जिससे जनता के बीच माहौल बना रहे। ऐसे में उसे सही उम्मीदवार चुनने में भी आसानी होती है। कुछ पार्टियां अन्य इच्छुक उम्मीदवारों को अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए भी फेक उम्मीदवार मैदान में उतारती हैं।

डेमोक्रेसी में चुनाव एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनिवार्य प्रक्रिया है जिससे एक डेमोक्रेटिक व्यवस्था कायम रह सके। लोग एक बेहतर जीवन की उम्मीद करते हैं और इसी आशा के साथ वे अपनी उम्मीदों को पूरा करने करने के लिए राजनीतिक पार्टियों में संभावनाएं तलाशते हैं। लेकिन ऐसे स्वार्थी पॉलीटिशयन की वजह से चुनाव प्रभावित होता है और मतदान प्रतिशत कम रहता है। एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के नाम पर चुनाव इसीलिए लड़ा जाता है ताकि लोकतंात्रिक व्यवस्था कायम रखी जा सके। उदाहरण के लिए बीजेपी मोदी, योगी, शाह के नाम पर, सपा अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, राम गोपाल यादव, बसपा मायावती, सतीश चंद्र मिश्र, कांग्रेस राहुल गांधी, प्रियंका गांधी आप पार्टी अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह आदि के नाम पर चुनाव लड़ती हैं।

इस भावी उम्मीदवार के बहुत सारे रंग हैं। इस बहुआयामी राजनीतिक आसमान में सभी अपने अपने उददेश्य केसाथ उड़ रहे हैं। लेकिन इसका नुकसान सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखने में होता है। इसलिए भावी उम्मीदवारी का खेल राजनीति और लोकतांत्रिक व्यवस्था दोनों के लिए खतरनाक है। इसमें बदलाव और विकास की आवश्यकता है।

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