हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, SC-ST एक्ट में दोषसिद्धि के बाद ही पीड़ित को दिया जाए मुआवजा
उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मुकदमों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को सिर्फ एफआईआर दर्ज कराने या फिर चार्जशीट दाखिल होने के आधार पर ही सरकारी मुआवजा नहीं मिलना चाहिए. आरोपी के दोषी करार दिए जाने के बाद ही शिकायतकर्ता को मुआवजा मिलना चाहिए.
हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि तमाम मामलों में मुआवजा पाने के लिए लोग आरोपियों से समझौता कर लेते हैं. दर्ज कराए गए आपराधिक मुकदमों को वापस लेने की अर्जी कोर्ट में लगाते हैं. बड़ी संख्या में इस तरह के मामले सामने आने पर हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने यूपी के चीफ सेक्रेटरी, प्रिंसिपल सेक्रेट्री होम और सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को आदेश की कॉपी भेजने को भी कहा है.
75 हजार का मुआवजा भी लिया
बता दें, रायबरेली के इसरार अहमद की याचिका पर हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है. इसरार अहमद के खिलाफ रायबरेली के नसीराबाद थाने में आईपीसी की गंभीर धाराओं के साथ ही एससी-एसटी एक्ट में भी मुकदमा दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता ने मुकदमा दर्ज कराने के बाद 75 हजार का मुआवजा भी ले लिया था. इसके बाद शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता में समझौता हो गया.
लखनऊ बेंच में हुई मामले की सुनवाई
याचिकाकर्ता इसरार ने समझौते के आधार पर आपराधिक कार्रवाई रद्द किए जाने का आदेश दिए जाने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी. हालांकि मुआवजे पर अहम आदेश देने के बावजूद कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील मंजूर कर ली. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई.