आर्थिक नीति की न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का अर्थ यह नहीं, हम चुप बैठ जाएंगे: सुप्रीम कोर्ट
देश में नोटबंदी हुए छह वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। विभिन्न पक्षों की ओर से दायर 58 याचिकाओं पर देश की शीर्ष अदालत सुनवाई कर रही है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट का मकसद यह जानना है कि नोटबंदी करना क्या सही फैसला था या फिर यह देश के लोगों के साथ हुआ गलत निर्णय?…इसी मामले पर सुनवाई करते हुए एक वक्त ऐसा आया जब मंगलवार को सु्प्रीम कोर्ट को यह कहना पड़ गया कि अदालत इस मामले में चुपचाप नहीं बैठ जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से हलचल मच गई है। आगे इस मामले पर क्या होने वाला है, यह तो फैसला आने के बाद ही पता चलेगा। मगर आइये आपको बताते हैं कि मंगलवार को कोर्ट में क्या-क्या हुआ?….
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब यह नहीं है कि अदालत चुप बैठ जाएगी। साथ ही, शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार किस तरह से निर्णय लेती है उस पर कभी भी गौर किया जा सकता है। शीर्ष अदालत आठ नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि ‘‘अस्थायी कठिनाइयां थीं और वे राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग भी हैं, लेकिन एक तंत्र था जिसके द्वारा उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान किया गया। न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के कानूनी अनुपालन की संवैधानिक अदालत द्वारा पड़ताल की जा सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘अदालत सरकार द्वारा लिए गए फैसले के गुण-दोष पर नहीं जाएगी। लेकिन वह हमेशा उस तरीके पर गौर कर सकती है जिस तरह से फैसला लिया गया था। महज इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत चुपचाप बैठ जाएगी।
आरबीआइ ने कहा नोटबंदी में नहीं हुई कोई चूक
नोटबंदी पर सुनवाई कर रही पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना भी हैं। पीठ ने कहा, ‘‘फैसले के गुण-दोष के संबंध में यह सरकार पर है कि वह अपनी बुद्धिमता से यह जाने कि लोगों के लिए सबसे अच्छा क्या है, लेकिन रिकॉर्ड में क्या फैसला लिया गया था, क्या सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया था, हम इस पर गौर कर सकते हैं।’’ पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब आरबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने नोटबंदी की कवायद का बचाव करते हुए कहा कि निर्णय लेने में कोई प्रक्रियात्मक चूक नहीं हुई थी। गुप्ता ने कहा, ‘‘जब तक असंवैधानिक नहीं पाया जाता है, तब तक आर्थिक नीति के उपाय में न्यायिक समीक्षा का समर्थन नहीं किया जा सकता। आर्थिक नीति बनाने में आर्थिक रूप से प्रासंगिक कारकों को विशेषज्ञों के लिए छोड़ दिया जाता है।’’ याचिकाकर्ताओं की दलील कि नोटबंदी के दौरान नागरिकों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, इसका खंडन करते हुए आरबीआई के वकील ने कहा कि अर्थव्यवस्था में फिर से मुद्रा का प्रवाह बढ़ाने के लिए विस्तृत उपाय किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा नोटबंदी की सिफारिश करने वालों का ब्यौरा
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने नोटबंदी की सिफारिश करने वाले आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक में भाग लेने वाले सदस्यों के बारे में भी ब्योरा मांगा। न्यायमूर्ति बी आर गवई ने कहा, ‘‘कितने सदस्य उपस्थित थे? हमें बताने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।’’ गुप्ता ने जवाब दिया, ‘‘हमारे पास कोरम था, हमने स्पष्ट रूप से वह रुख अपनाया है।’’ याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई को आठ नवंबर, 2016 को आयोजित आरबीआई के निदेशक मंडल की बैठक के एजेंडा नोट और ब्योरे को सार्वजनिक करना चाहिए। चिदंबरम ने कहा, ‘‘वे ब्योरा क्यों रोक रहे हैं? मुद्दे को तय करने के लिए ये दस्तावेज नितांत आवश्यक हैं। हमें पता होना चाहिए कि उनके पास क्या सामग्री थी, उन्होंने क्या विचार किया।’’ चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई को यह दिखाने की जरूरत है कि उसने अपने फैसले की व्यापकता और आनुपातिकता पर विचार किया था। मामले पर बुधवार को भी सुनवाई होगी। केंद्र ने हाल में एक हलफनामे में शीर्ष अदालत को बताया कि नोटबंदी की कवायद एक ‘‘सुविचारित’’ निर्णय था और जाली मुद्रा, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था।