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‘बेटी बचाओ, बेटा पढ़ाओ’, कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा- लड़कों को सिखाएं कि वह महिला का आदर करें

कर्नाटक में 11 दिसंबर को महिला को निर्वस्त्र कर मारपीट करने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ से काम नहीं चलेगा। अब जरूरत है कि बेटों को पढ़ाएं और उनसे बेटियों को बचाएं।

मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने मीडिया रिपोर्टों के आधार मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए समाज पर सामूहिक जिम्मेदारी तय करने का आह्वान किया। न्यायमूर्ति वराले ने कहा, जब तक लड़कों को नहीं सिखाएंगे कि महिलाओं का सम्मान और रक्षा किस तरह करनी है, तब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। लिहाजा, अब जरूरत है कि बेटों को पढ़ाया जाए कि बेटियों को कैसे और किससे बचाना है।

कर्नाटक के बेलगावी के हुक्केरी में 11 दिसंबर को 42 वर्षीय महिला को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया गया और फिर बिजली के खंभे से बांधकर पीटा गया। गांव के लोग महिला के बेटे से नाराज थे, क्योंकि उसने गांव की ही एक लड़की के साथ भागकर शादी कर ली थी। न्यायमूर्ति वराले ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में सामूहिक जिम्मेदारी तय करना जरूरी है।

अपराधियों की हरकत से ज्यादा मौके पर खड़े लोगों की निष्क्रियता ज्यादा खतरनाक है। मूकदर्शक खड़े ये लोग हमलावर को नायक बना देते हैं। लिहाजा, ऐसे मामलों में सामूहिक दंड देने वाले कदम उठाने होंगे।

अच्छे समाज के बिना राष्ट्र का निर्माण नहीं

न्यायमूर्ति वराले ने रोमन साम्राज्य का उत्थान और पतन किताब के हवाले से कहा, जब तक आप एक अच्छे समाज का निर्माण नहीं करते, एक राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते। जब तक हम अगली पीढ़ी में ये मूल्य नहीं डालेंगे, कुछ नहीं होगा।

गांव को सामूहिक सजा देनी चाहिए

विलियम बेंटिक का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति वराले ने कहा, जिस तरह बेंटिक ने अपराधियों को शरण देने वाले गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाया था, उसी तरह ऐसे अपराध को चुपचाप होते देखने वाले समुदायों और गांवों को सामूहिक सजा देनी चाहिए। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि करीब 8,000 की आबादी वाले गांव में 13 हमलावरों ने 50 से 60 मूकदर्शकों के सामने एक महिला का वस्त्रहरण किया। वहां केवल जहांगीर नाम के एक व्यक्ति ने पीड़ित महिला की मदद का साहस दिखाया। इस दौरान हमलावरों ने उस पर भी हमला किया।

मूकदर्शक क्यों बने रहे लोग

बहस के दौरान उन्होंने पूछा कि आखिर ग्रामीण मूकदर्शक क्यों बने रहे, क्या वे पुलिस से डरते हैं। ऐसा हो सकता है, क्योंकि पुलिस गवाहों के साथ ठीक से व्यवहार नहीं करती है। उनके साथ कभी मित्रतापूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता है। इससे वे आतंकित हो जाते हैं। पुलिस गवाह और आरोपी के बीच अंतर नहीं करती है। सामूहिक जिम्मेदारी के लिए नए कानूनों का सुझाव देते हुए न्यायालय ने कहा कि इतने सारे दर्शक, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। यह सामूहिक कायरता है। पुलिस ब्रिटिश राज से बाहर आए इसके लिए कुछ करना होगा। इस संबंध में विधि आयोग को सुझाव दिए जाएं, ताकि कानून बनाया जाए।

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