Uncategorized

ईवीएम पर संदेह की उंगली

तनवीर जाफरी
हरियाणा विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित परिणामों ने पूरे देश के न केवल सभी प्रमुख एजेंसीज द्वारा किए गए एक्जिट पोल्स को बुरी तरह झुठला दिया था, बल्कि बड़े-बड़े राजनैतिक विश्लेषकों को भी हैरानी में डाल दिया था। मजे की बात तो यह कि केवल कांग्रेस पार्टी ही  हरियाणा में सत्ता में वापसी की उमीदों को लेकर गद्गद् नहीं थी, बल्कि स्वयं भाजपा को भी यह अहसास था कि किसान आंदोलन, अग्निवीर योजना, पहलवानों, महंगाई जैसे तमाम ज्वलंत मुद्दे उठने के बाद राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में इनके अलावा भाजपा को दस वर्ष की सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ सकता है। इसी आशंका के कारण भाजपा ने लगभग 35 प्रतिशत वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए थे। टिकट कटने वालों में कई मंत्री भी शामिल थे।

भाजपा की इस कवायद के बावजूद उसके 12 में से 9 मंत्री चुनाव में पराजित हो गए। हद तो यह है कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा की सीटों को भी बदल दिया गया था। इन सबके बावजूद नायब सिंह सैनी और अनिल विज जैसे नेताओं को भी मामूली मतों से ही जीत हासिल हुई। राज्य में 10 विधानसभा सीटें तो ऐसी रही जहां बीजेपी की जीत का अंतर 5 हजार से भी कम रहा। चूंकि हरियाणा में विधानसभा के नतीजे कांग्रेस के लिए  अप्रत्याशित थे, इससिलए कांग्रेस ने सीधा आरोप लगा दिया कि हरियाणा चुनाव में उसे हरवाया गया है। उसका आरोप था कि कई जगह ईवीएम को हैक किया गया। इस सबके बीच सवाल यह भी उठा कि अनेक ईवीएम इंडिकेटर में बैटरी की मात्रा 90 व 95त्न तक दिखा रही थी, जबकि मतदान के अंतिम समय में प्राय: ईवीएम की बैटरी चार्जिंग की मात्रा 60-70 फीसद के बीच या इससे भी कम ही हुआ करती है। कांग्रेस का आरोप था कि जहां-जहां ईवीएम में बैटरी कम थी वहां-वहां कांग्रेस को प्राय: बढ़त मिली। इस आरोप का सीधा अर्थ है कि ईवीएम को बदल दिया गया था। कांग्रेस द्वारा 20 सीटों पर इस तरह की गड़बड़ी होने की शिकायत दर्ज कराई।

सवाल यह है कि बीती 17 मार्च को भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन के समय पर मुंबई में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था, राजा की आत्मा ईवीएम में है’, उस समय राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि एमके स्टालिन और फारूक अब्दुल्ला जैसे अनेक बड़े नेताओं ने भी ईवीएम का मुद्दा उठाया था। और उस समय भी सभी का ईवीएम को लेकर एक ही स्वर था कि यदि उनकी सरकार आएगी तो वे ईवीएम को हटा देंगे। सवाल यह है कि हरियाणा के साथ-साथ जम्मू कश्मीर विधानसभा के भी चुनाव परिणाम आए तो जम्मू कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को मिले स्पष्ट बहुमत को स्वीकारा जा रहा है, लेकिन हरियाणा में भाजपा को मिली जीत प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को पच नहीं पा रही। और वे खिसियायी बिल्ली खंबा नोचे के अंदाज में अपनी हार की भड़ास ईवीएम के त्रुटिपूर्ण होने की बात कहकर निकाल रहे हैं। बेशक, लोकतंत्र को सबको अपनी बात या राय रखने का हक है, लेकिन आचरण में दोहरापन नहीं होना चाहिए। यदि कांग्रेस के नेता हरियाणा में ईवीएम की कार्यप्रणाली में त्रुटियां निकाल रहे हैं तो फिर जम्मू कश्मीर विधानसभा परिणामों से सहमत क्यों? इससे पता चलता है कि वे अपनी हार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, और चुनाव प्रक्रिया का अभिन्न और अविश्सनीय अंग बन चुके जरिए पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

इस प्रकार का आचरण किसी भी सूरत में लोकतंत्र के हित में नहीं है। उसे ध्यान रहना चाहिए कि पिछले लोक सभा चुनावों में इंडिया गठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन किया था। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी अच्छा प्रदर्शन रहा। उस समय भी किसी ने ईवीएम पर इतना दोष नहीं मढ़ा। कर्नाटक में जीते तो भी ईवीएम ठीक थी? और इन सबसे बड़ी बात यह कि जब विपक्षी दलों के नेता ईवीएम को ही गलत बताते हैं फिर आखिर अब तक पूरे विपक्ष ने मिल कर ईवीएम के विरुद्ध संयुक्त रूप से कोई बड़ा आंदोलन क्यों नहीं किया? यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के कई वरिष्ठ वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे ईवीएम विरोधी आंदोलन का भी किसी राजनैतिक दल ने खुल कर साथ नहीं दिया था?

यदि वास्तव में ईवीएम निष्पक्ष चुनाव प्रभावित करने की क्षमता रखती है तो निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के लिए घातक है। सभी राजनैतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर इसका विरोध करना चाहिए। यहां तक कि यदि सत्ता पक्ष के भी कई वरिष्ठ नेता, तकनीकी एक्सपर्ट और पूरा विपक्ष ईवीएम से चुनाव नहीं चाहता तो इसके द्वारा होने वाले चुनावों का बहिष्कार तक किया जाना चाहिए क्योंकि सच तो यह है कि ईवीएम पर शुरु आती संदेह की उंगली तो भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा ही उठाई गई थी। वैसे भी इसकी संदिग्धता को लेकर इसलिए भी सवाल उठते रहते हैं कि आखिर, दुनिया के अनेक आधुनिक देशों ने इसका प्रचलन अपने देशों में क्यों बंद कर दिया? और आधुनिक होने के बावजूद ऐसे देशों में आज भी चुनाव बैलट पेपर द्वारा ही क्यों कराए जाते हैं? ईवीएम की संदिग्धता को लेकर स्थिति स्पष्ट,पारदर्शी और सर्वस्वीकार्य होनी चाहिए। बेईमानी पर आधारित लोकतंत्र वास्तविक लोकतंत्र का परिचायक नहीं हो सकता।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights