उत्तर प्रदेशराज्य

बनारस से डिब्रूगढ़ की रोमांचक-अदभुत यात्रा शुरु, जानें 3200 किमी के सफर की खासियत व किराया

वाराणसी: भारत को सबसे लंबे रिवर क्रूज की सौगात मिल गई है। रिवर क्रूज एमवी गंगा विलास को आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए रवाना कर दिया है। यह 52 दिन में करीब 3200 किमी की दूरी तय कर डिब्रूगढ़ पहुंचेगा। गंगा विलास क्रूज यूरोपीय देशों के लोगों को खूब पसंद आ रहा है। जिसका परिणाम है कि आगामी 5 सालों के लिए लगभग 60 फ़ीसदी यूरोपीय व अन्य विदेशी नागरिकों ने इसकी बुकिंग करा ली है। इसमें सफर करने वाले विदेश सैलानी भी सुविधाओंक को लेकर काफी संतुष्ट हैं। आइए जानते हैं काशी से डिब्रूगढ़ तक गंगा विलास के सफर की क्या सुविधाएं और खासियत है।

● जलयान में 36 पर्यटक एक साथ यात्रा कर सकते हैं। पहले सफर में वाराणसी से स्विट्जरलैंड के कुल 32 पर्यटक यात्रा करेंगे। इसमें से 10 पर्यटक कोलकाता में उतर जाएंगे और स्विट्जरलैंड के ही इतने नए यात्री वहां आगे के सफर के लिए जुड़ जाएंगे।
● यात्रा के दौरान जलयान में भारतीय व्यंजन विदेशी सैलानियों को परोसा जाएगा। इस दौरान वाराणसी की जलेबी- कचोरी और चाट, बिहार की बाटी- चोखा तो बंगाल में जलयान के पहुंचते ही भुजिया चावल भी जायके में शामिल होगा। इसके अतिरिक्त नाश्ते में चूड़ा- मटर, इडली, सांभर, चाय- कॉफी आदि पर्यटकों को परोसे जाएंगे।
● 40 कर्मचारियों से युक्त गंगा विलास जलयान कोलकाता में 18 माह में बनकर तैयार हुआ था। जलयान पूरी तरह भारतीय राज्य से साज-सज्जा संयुक्त है। इसमें शयनयान, किचन, जिम, रेस्टोरेंट, सैलून, गीत संगीत, चिकित्सा, ओपन स्पेस सहित इसमें सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं हैं।
● भारत में 25 हजार रुपये और बांग्लादेश में 50 हजार रुपए प्रति दिन किराया है। आते समय (अपस्ट्रीम) लगभग 12 किलोमीटर और जाते समय (डाउनस्ट्रीम) लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से सफर तय होगा।
● आधुनिक सुविधाओं से युक्त स्क्रूज यात्रा का रूट वाराणसी और गाजीपुर होते हुए बक्सर से पटना, मुंगेर और भागलपुर की सुल्तानपुर, बंगाल से बांग्लादेश होते हुए डिब्रूगढ़ तक होगा। इस दौरान अलग-अलग शहरों में इसका लगभग 50 जगहों पर ठहराव होगा।
● जलयान के अत्याधुनिक उपकरण गंगा को प्रदूषित होने से बचाने के साथ ही पर्यावरण स्वच्छ रखने में मददगार है। जलयान में पानी के लिए आरओ और एसटीपी प्लांट लगा है, ताकि दूषित पानी गंगा में न जाए। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक का भी प्रयोग नहीं किया जाता है। प्रदूषण और शोर रहित प्रणाली से सफर के साथ नदी का इको सिस्टम भी प्रभावित नहीं होगा।

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