अतीक और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हुयी हत्या किसी फ़िल्मी कहानी या वेब सीरीज से प्रेरित है
अतीक और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हुयी हत्या और अतीक के बेटे की पुलिस मुठभेड़ में मौत इन दिनों उत्तर प्रदेश में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। अतीक और अशरफ की हत्या वास्तव में स्तब्धः करने वाली और रोमांचित करने वाली घटना है और उस घटना क्रम को देखकर साफ लगता है की ये किसी फ़िल्मी कहानी या वेब सीरीज से प्रेरित हैया किस प्रेरित कर सकती है। हलाकि इस रोमांचक कहानी की शुरुवात भी ऐसे ही रोचक है 80 के दौर में प्रयागराज के चकिया क्षेत्र में एक बाहुबली और माफिया सरगना होता था जिसका नाम था चाँद बाबा वो भी उस क्षेत्र का बेताज बादशाह हुआ करता था और अतीक ने उसे सरे आम गोली मारकर हत्या की और धीरे धीरे उस साम्राज्य पर कब्ज़ा पर लिया। अतीक को नजदीक से जानने वाले बताते है की अतीक वैसे वक्तिगत तौर पर मृदुभाषी और तमीज से बात करता था लेकिन व्यापारिक मामलों में काफी खुखार और बेरहम था। लोगो के सम्पति पर कब्ज़ा करना उसका मुख्य पेशा था प्रयागराज में कीमती सम्पतियो पर उसकी नज़र रहती थी और उसे वो किसी न किसी तरह से कब्ज़ा कर लेता था। और उसका भी अंत उसी तरह से सरे आम गोली मारकर हो गया। माफिया और दुर्दात अपराधी अतीक और अशरफ को पुलिस के पहरे में जिस तरह से मेडिकल जाँच के लिए लाया गया और मिडिया के कैमरों बार बात करते समय कनपटी पर लगाकर गोली मारकर उसकी और उसके भाई अशरफ की सरे आम हत्या की गयी ये काफी रोमांच भरता है , और इसकी के साथ एक बड़े आपराधिक साम्राज्य का बेताज बादशाह मिटटी में मिल जाता है। ये एक ऐसा घटनक्रम है जो की लम्बे समय तक किस्से कहानियो में याद किया जायेगा। वैसे अगर देखा जाये तो इस घटना के राजनैतिक, सामाजिक, भावनात्मक, क़ानूनी और दार्शनिक पहलू है और हर व्यक्ति अपनी समझ अपनी रूचि और अपने नफे नुकसान से इस घटनाक्रम की व्यख्या कर रहा है और इसे प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन यदि सारे पहलुओं पर बात की जाये तो हम अखिरकार इसी नतीजे पर पहुंचते है एक सही घटना गलत तरीके से हुई है । हमें ये समझना चाहिए इसके अलग अलग पहलुओं से एक ही घटना के कितने स्वरुप हो सकते है।
राजनैतिक पहलू से देखे तो ये घटना हिन्दू वोट बैंक को मानसिक तौर पर सहानुभूति और आत्मसंतोष देती है क्योकि मृतक अपराधी मुस्लिम समुदाय से सम्बंधित था और उस दुर्दांत मुस्लिम अपराधी का अंत हुआ। हिन्दू समुदाय के लोगो को ये अनुभूति होती है की सरकार उनके साथ है और दूसरे समुदाय के अपराधियो से नाराज़ है। राजनैतिक तौर लोगो को यह अहसास दिलाने में सरकार कुछ हद तक सफल भी हुई की ये सरकार एक समुदाय विशेष की भावनाओं का ख्याल रखती है। इसका राजनैतिक फायदा भारतीय जनता पार्टी को निश्चित रूप से मिलेगा और मिलना भी चाहिए। क्योकि सरकार की मंशा समाज को भयमुक्त और अपराध मुक्त करने की प्रतीत होती है वैसे भी सरकार एक अपराधी के खिलाफ काम कर रही है। इस घटना ने सरकार की अपराध विरोधी छवि में सकरात्मक इजाफा तो किया है और जो भी बीजेपी के वर्तमान समर्थक है उन्हें एक मजबूत तर्क मिल जाता है। उनकी हिन्दू समर्थित भावनाओं को और काफी पोषण भी मिलता है। लेकिन इस घटना के फलस्वरूप समाज का नया वर्ग राजनैतिक रूप से सरकार के समर्थन में जुड़ेगा ऐसा प्रतीत नहीं होता है , जबकि ध्रुवीकरण के सिद्धांत के तहत यदि एक पक्ष एक जुट होता है तो दूसरा पक्ष भी मजबूरन उतना ही एकजुट हो जाता है। प्रश्न ये है की क्या अतीक, अशरफ की हत्या की शाबाशी सरकार को मिलनी चाहिए क्या ये सरकार की उपलब्धि है या सरकार की कानून व्यस्था में असफलता ? क्या एक अपराधी द्वारा दूसरे अपराधी की पुलिस अभिरक्षा में सरे राह हत्या करना किसी सरकार के लिए शाबाशी का कारण होना चाहिए ? असद की पुलिस मुठभेड़ सही हो सकती है और पुलिस की गोलियों से उसकी जान जा सकती है और ये एक हद तक विश्वनीय भी माना जा सकता है लेकिन अतीक और अशरफ की हत्या एक अपराध है और सरकार को इसकी शाबाशी नहीं मिलनी चाहिए।
भावतमक तौर पर इस घटना को देखा जाय तो भावनाये किसी भी कानून को एक सीमा के बाद नहीं मानती है जैसे ही कोई कानून भावनाओं के आड़े आता है यहाँ भावनाए कानून को तोडना पसंद करती है इस हिसाब से एक वर्ग ये मानता है की ये घटना बिलकुल सही हुयी और एक पक्ष के हिसाब से बिलकुल गलत दोनों पक्ष के पास अपनी भावनाओं को सही ठहरने के लिए पर्याप्त तर्क है। लेकिन सरकार क्या कानून के प्रति उत्तर दायी है या भावनाओं के प्रति। भावनाये कभी कभी अराजता फैलाती है इसीलिए कानून की स्थापना की गयी और सरकार को कानून का राज्य स्थापित करने की शपथ दिलाई जाती है। हो सकता है तात्कालिक रूप से किसी वर्ग को कोई घटना अच्छी लगे लेकिन और राजनैतिक फायदे भी हो लेकिन ये फैसला समाज के लिए दूरगामी हितकर नहीं हो सकता और ये नयी नए तरह के आपराधिक स्वीकारिता की परपरा को विकसित करता है। भावनाये तो सभी की महत्वपूर्ण है तो क्या सभी की भावनाओं के अनुरूप फैसले लिए जा सकते है? इसलिए सत्ता को कुछ कड़े और बड़े निर्णय कानून सम्मत लेने पड़ते है क्योकि कानून की संरचना सामाजिक संतुलन और सभ्य समाज की स्थापना के लिए अनुरूप होती है।
कानूनी पहलू के तौर पर असद की पुलिस मुढभेड़ को अदालत देखेगी और अपना निर्णय देगी लेकिन क्या इस तरह के इत्तेफाक कभी कभी पूर्वनियोजित नहीं लगते है और ऐसा लगता है सरकार भी इसे पूर्व पूर्वनियोजित दिखाना चाहती है। खैर वजह जो भी हो बदला लेने की होड़ और राजनीति फायदा और नुकसान के दबाव में लिए गए फैसले कानून के लिए असहज स्थिति पैदा करते है। क्या कानून की स्थिति कमजोर होने से सामाजिक संघर्ष की स्थिति पैदा नहीं होगी ? क्या कानून की व्यापकता की कमी के कारण जहा एक सरकार किस अपराधी को संरक्षित करती है वही दूसरी सरकार में उसकी पुलिस अभिरक्षा हत्या कर दी जाती है। दोनों ही सरकार ने अपने अपने तरीके और तर्क से कानून का दुरपयोग किया क्योकि दोनों ही स्थितियां कानून सम्मत नहीं है। वही दूसरी ओर एक अपराधी चार बार जतना द्वारा चुन लिया जाता है और देश के संसद का सदस्य तक बन जाता है तो फिर आखिर किसकी गलती है ? सरकार की राजनैतिक पार्टी की जनता की या कानून की या थोड़ा थोड़ा सभी की।
दार्शनिक पहलू से देखा जाये तो सभी का अपना अपना स्वार्थ है और सब अपने स्वार्थ और अपने फायदे के लिए काम कर रहे है चाहे वो जनता हो राजनैतिक पार्टी हो सरकार हो या अपराधी ही क्यों न हो सभी की अपनी अपनी आवश्यकताएं है किसी को न तो समाज के उत्थान से मतलब है नहीं कानून से न ही नैतिकता से, सभी एक संकीर्ण खुख और त्वरित फायदे से प्रेरित है और नैतिकता और आदर्श समाज के एक काल्पनिक और किताबी विषय बन कर रह गया है। लेकिन ऐसे होड़, मनुष्य, समाज और राष्ट्र को दिनों दिन ज्यादा संघर्ष और जटिल सामाजिक व्यवस्था की ओर ले जाती है जहा सामाजिक उत्थान और कठिन भी होता जाता है। इसका खामियाजा आखिरकार कमजोर और मजलूम को ही झेलना पड़ेगा। यह एक बेहतरीन समाजिक विकास के संकेत नहीं है।
समाज में जातीय भयनाये के अलावा भी कई और भी भवतानमक मुद्दे है जिस पर लोगो को सोचने पर विवश करना चाहिए और सरकार से उस विषयो पर भी जबाब मांगना चाहिए। क्या हमारी धार्मिक और जातीय भयनाये चरम पर है और क्या ये विषय हमें सही दिशा में ले जायेंगे ? या सिर्फ कुछ दिनों के लिए सत्ता दिलाने का साधन भर रह जायेगे। आज सरकार को एक दूरगामी सोच के साथ लोगो के सामाजिक और आर्थिक विकास का भी खाका खींचना चाहिए और समाज के साथ साँझा करना चाहिए और जिस दिन समाज को उसके खूबसूरत भविष्य की किरण दिखेगी निश्चित रूप से सामजिक स्वरुप और लोगो की सोच भी बदलेगी। और हमारे देश और समाज में एक नया सूत्रपात होगा।