नई दिल्ली. राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी एजी पेरारिवलन (AG Perarivanan) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के रिहाई के आदेश के चंद घंटों के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है. इस मामले में उन्हें चेन्नई की एक विशेष अदालत द्वारा मृत्युदंड दिया गया था जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. रिहा होने के तुरंत बाद पेरारिवलन ने अपनी मां अर्पुथम्मल और रिश्तेदारों से मुलाकात की. इस मौके पर मीडिया भी मौजूद रहा. मीडिया से बातचीत में पेरारिवलन ने कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि मृत्युदंड की कोई आवश्यकता नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों सहित कई न्यायाधीशों ने ऐसा कहा है और कई ऐसे उदाहरण हैं. हर कोई इंसान है.
एजी पेरारिवलन ने कहा, ‘मैं अभी बाहर आया हूं. कानूनी लड़ाई को 31 साल हो चुके हैं. मुझे थोड़ी सांस लेनी है. मुझे कुछ समय दें.’ यह बात उन्होंने एक सवाल के जवाब में कही. मीडिया ने उनसे पूछा था कि रिहा होने के बाद उन्हें कैसा लगा और अब उनकी क्या योजनाएं होंगी. उन्होंने कोर्ट के आदेश पर प्रसन्नता व्यक्त की. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड मामले में दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा करने का बुधवार को आदेश दिया था. पेरारिवलन बीते 30 साल से अधिक समय से जेल में बंद रहा. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया. पीठ ने कहा, ‘राज्य मंत्रिमंडल ने प्रासंगिक विचार-विमर्श के आधार पर अपना फैसला किया था. अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए, दोषी को रिहा किया जाना उचित होगा.’
9 मार्च को मिली थी जमानत
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे एजी पेरारिवलन को न्यायालय ने यह देखते हुए नौ मार्च को जमानत दे दी थी कि सजा काटने और पैरोल के दौरान उसके आचरण को लेकर किसी तरह की शिकायत नहीं मिली. शीर्ष अदालत 47 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनाई कर रही थी, जिसमें उसने ‘मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी’ (एमडीएमए) की जांच पूरी होने तक उम्रकैद की सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था.
हत्याकांड में क्या थी पेरारिवलन की भूमिका
बता दें कि 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक जनसभा के दौरान हत्या कर दी गई थी. इसके बाद 11 जून 1991 को पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया था. ये एक आत्मघाती हमला था. बम धमाके के लिए इस्तेमाल की गई 9 वोल्ट की दो बैटरी खरीद कर मास्टरमाइंड शिवरासन को पेरारिवलन ने ही दिया था.
मिली थी मौत की सज़ा
बता दें कि पेरारिवलन को साल 1998 में टाडा कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी. बाद में इस सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. साल 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखने का आदेश दिया था. हालांकि इसके बाद साल 2014 में इसे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था.