अंतर्राष्ट्रीयदिल्ली/एनसीआरनई दिल्ली

मनोज कुमार की पतंग उड़ाने से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक रेसलिंग की यात्रा

द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित ओम प्रकाश दाहिना बने थे कोच 

1987 से लेकर 1996 तक की रेसलिंग 

नई दिल्ली। मनोज कुमार उर्फ बिट्टू पहलवान की कहानी प्रेरणादायक है, जो की एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं। जिनके दादाजी और पिताजी किसान हैं। मनोज कुमार का जीवन संघर्ष, परिश्रम, और सही दिशा में मेहनत की अहमियत को उजागर करता है। इनकी कहानी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं जहां एक कक्षा 6 में पढ़ने वाला विद्यार्थी पतंग पकड़ने के लिए उसके पीछे भागता हुआ पहलवानों के अखाड़े में जा पहुंचता है। और वहां बैठे एक बुजुर्ग इनसे कहते हैं कि बेटा पतंग पकड़ना तुम्हारा भविष्य नहीं हैं। इतना कहते ही उस बुजुर्ग ने इनसे पतंग लेकर इन्हें अखाड़े में भेज दिया, और वहां इनके साथ कुश्ती करते हुए एक बच्चे ने इन्हें अखाड़े में गिरा दिया।  यह चीज मनोज कुमार के दिल को काफी हद तक आहत की। बस फिर क्या उस दिन से ही मनोज कुमार ने ठान लिया कि अब उन्हें रेसलिंग ही करनी है। मनोज कुमार के इस फैसले का सम्मान उनके दादाजी और पिताजी ने भी किया क्योंकि मनोज कुमार पढ़ाई में भी ज्यादा अच्छे नहीं थे।

तकरीबन सात आठ महीने रेसलिंग प्रेक्टिस करने के बाद मनोज कुमार जिला मेरठ और UP स्टेट में 52 किलो में फर्स्ट पोजीशन प्राप्त किये। जिसे देखकर उनके गुरुजी कृष्णपाल बहुत प्रसन्न हुए। और यहां से रेसलिंग में पदक प्राप्त करने का सिलसिला प्रारंभ हो गया । मनोज कुमार दिन प्रतिदिन मंजिल की ऊंचाइयों पे चढ़ते चले गए नेशनल में फर्स्ट पोजीशन प्राप्त की, और उसके बाद (SAI) भारतीय खेल प्राधिकरण में उनका सिलेक्शन हो गया। उन्हें सोनीपत हरियाणा का सेंटर मिला, उनके कोच बने ओम प्रकाश दाहिना जो द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित थे।  इन्हीं की देखरेख में मनोज कुमार ने रेसलिंग शुरू कर दी। यहीं से फिर वे स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल तक गए जो कि वर्तमान समय में Health and Family welfare Department दिल्ली में कार्यरत हैं।

मनोज कुमार ने रेसलिंग 1987 से लेकर 1996 तक किया और इतनी जल्दी रेसलिंग छोड़ने का कारण कुछ ऐसा था, कि इंडिया कैंप में ट्रायल हो रहा था और वहां फाइनल राउंड में मनोज कुमार का दो पॉइंट ज्यादा था, लेकिन टेक्निकल फॉल्ट बताकर किसी दूसरे को विनर बना दिया गया। जिससे मनोज कुमारकाफी ज्यादा मायूस होकर रेसलिंग छोड़ने का फैसला कर लिया। घरवालों एवं गुरु जी के द्वारा समझाने के बावजूद भी इन्होंने निश्चय कर लिया कि अब रेसलिंग नहीं करना करेंगे।

मनोज कुमार के जीवन का अनुभव दर्शाता है कि कैसे एक छोटी सी घटना एक बड़े बदलाव की वजह बन सकती है। पतंग की खोज में पहलवानी की शुरुआत ने इनको राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इनकी मेहनत और समर्पण ने इनको एक सफल पहलवान बनाया, और अंत में भी इन्होंने अपने अनुभवों से एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। और इनकी यह सलाह है, कि बच्चों को अपने लक्ष्यों की ओर ध्यान देना चाहिए , साथ ही जल्दी में फैसले नहीं लेने चाहिए। समय बहुत मूल्यवान है। जीवन में संघर्ष आते हैं, लेकिन इन्हें पार करने की दिशा और सही निर्णय लेने से ही सफलता मिलती है। आपके जैसे अनुभव साझा करना अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है और उन्हें अपने सपनों की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

हमारा विशेष कार्यक्रम “कोई सताये हमें बताए” केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (भारत सरकार) से समर्थित है ।
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