गाजियाबाद फर्जी मुठभेड़ मामला: सेवानिवृत्त एसओ समेत 5 को उम्रकैद और 4 पुलिसकर्मियों को पांच साल की सजा
सीबीआई कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ में एक डकैत को मारने वाली पुलिस टीम को कठोर कारावास की सजा सुनाई है। सजा पाने वाले में तत्कालीन थाना प्रभारी समेत पांच दोषी पुलिस कर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जबकि फर्जी मुठभेड़ की टीम में शामिल चार पुलिसकर्मियों को 5-5 साल की सजा सुनाई गई। जबकि मुकदमे में नामजद एक पुलिसकर्मी की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है। सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी अभियुक्तों को अर्थदंड की सजा से दंडित किया है। अदालत ने सभी को मंगलवार को दोषी ठहराया था।
गाजियाबाद की सीबीआई के विशेष न्यायाधीश परवेंद्र कुमार शर्मा की अदालत में बुधवार को इस मामले में दोषी ठहराए पुलिसकर्मियों की सजा पर बहस हुई। इस दौरान विशेष अदालत में पक्ष विपक्ष के अलावा अन्य अधिवक्तागणों से अदालत भरी थी। सभी अधिवक्ताओं में एक फर्जी एनकाउंटर के गुनहगार पुलिसवालों के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश झलक रहा था। सभी दोषी पुलिसकर्मियों को सख्त से सख्त सजा दिलाने के पक्ष में थे। विशेष अदालत में बुधवार दोपहर बाद करीब तीन बजे सजा के प्रश्न पर बहस शुरू हुई। बचाव पक्ष के सभी अधिवक्ताओं द्वारा अदालत को दलील दी गई कि सभी पुलिसकर्मी रिटायर हो चुके हैं। कई बीमारी एवं बुढ़ापे से ग्रस्त हैं। अधिवक्ता ने अदालत से अपील कि की वह अभियुक्तों की इन सभी पहलुओं को ध्यान में रख कम से कम सजा दे। अदालत ने बचाव एवं अभियोजन पक्ष को सुनने के बाद फर्जी एनकाउंटर मामले के सभी नौ दोषी पुलिसकर्मी को कठोर कारावास की सजा सुनाई।
सीबीआई के लोक अभियोजक अनुराग मोदी ने बताया कि अदालत से दोषी ठहराए गए पुलिसकर्मियों में एटा जिले के सिढ़पुरा थाने के तत्कालीन प्रभारी पवन सिंह, दरोगा श्रीपाल ठेनुआ, सिपाही सरनाम सिंह, राजेंद्र प्रसाद, मोहकम सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सभी अभियुक्तों को 38-38 हजार रुपए का अर्थदंड भी सुनाया गया। जबकि पुलिस टीम में शामिल सिपाही बलदेव प्रसाद, अवधेश रावत, अजय कुमार, सुमेर सिंह को 5-5 साल की सजा एवं 5-5 हजार रुपए का अर्थदंड सुनाया गया। सुनवाई के दौरान अजंट सिंह की मौत हो गई है। अदालत ने ठोस सबूतों एवं गवाहों के आधार पर सभी नौ पुलिसकर्मियों को फर्जी मुठभेड़ का दोषी करार दिया। इन पुलिसकर्मियों पर राजाराम की हत्या, मनगढ़ंत कहानी रचकर साक्ष्य मिटाने का अपराध सिद्ध हुआ। जबकि सभी को अपरहण से बरी कर दिया गया।
यह था पूरा मामला-
सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक अनुराग मोदी ने बताया कि 18 अगस्त 2006 को एटा जिले के सिढपुरा थानाक्षेत्र में बढ़ई राजाराम को डकैत बताकर पुलिसकर्मियों ने फर्जी मुठभेड़ में उसे मार गिराया था। तब पुलिसकर्मियों ने मुठभेड़ में मारे गए राजाराम पर कई आपराधिक इतिहास दर्ज होने की बात कही थी। जबकि उसके खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं था। मृतक बढ़ई राजाराम की पत्नी संतोष देवी ने पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने के लिए उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट के आदेश पर एक जून 2007 को इसकी सीबीआई जांच शुरू हो गई।
22 दिसंबर 2009 को सीबीआइ ने तत्कालीन एसओ सिढपुरा पवन सिंह, तत्कालीन उपनिरीक्षक श्रीपाल ठेनुआ, सात कांस्टेबल सरनाम सिंह, राजेंद्र प्रसाद, मोहकम सिंह, बलदेव प्रसाद, अवधेश रावत, अजय कुमार, सुमेर सिंह व तत्कालीन उपनिरीक्षक अजंट सिंह के खिलाफ हत्या, अपहरण व साक्ष्य मिटाने के आरोप में आरोप पत्र पेश किया। सीबीआई अदालत में मुकदमे के विचारण के दौरान अजंट सिंह की मृत्यु हो गई। बाकी सभी को अदालत ने हत्या व साक्ष्य मिटाने का दोषी करार दिया। जबकि अपहरण के आरोप से बरी किया।