अभिभावकों पर बढ़ा बोझ, किताबों के दाम और स्कूलों की मनमानी
नोएडा : कोरोना संकट के चलते पहले ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे अभिभावकों को महंगाई ने बड़ा झटका दिया है। सत्र 2022-23 में किताबों के दाम 30 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। स्टेशनरी की कीमत में भी 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं, स्कूलों की मनमानी ने अभिभावकों की परेशानी और बढ़ा दी है।
कोरोना महामारी के चलते बीते दो साल शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह प्रभावित रही। इसके चलते स्कूली किताब और स्टेशनरी व्यवसाय से जुड़े लोगों का काम भी प्रभावित हुए। इसका असर बाजार पर भी पड़ा है। कागज के दाम करीब 55 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। स्याही और छपाई भी महंगी हुई है। थोक पुस्तक विक्रेताओं का भुगतान फंसा हुआ है। 2023-24 से नई शिक्षा नीति लागू होने कारण पाठ्यक्रमों में बदलाव की संभावना को देखते हुए प्रकाशक मांग के अनुसार ही किताबें प्रकाशित कर रहे हैं। इसके चलते भी दिक्कत आ रही है। इसका सीधा असर कापी-किताबों के दामों पर पड़ा है। बढ़े दामों ने अभिभावकों का बजट बिगाड़ दिया है।
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स्कूलों की मनमानी जारी किताबों के दाम बढ़ने से अभिभावक किसी तरह किताबों का इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन स्कूलों की मनमानी लगातार जारी है। कुछ स्कूलों ने इस सत्र में नए प्रकाशकों की किताबें शुरू कर दी हैं। ऐसे अभिभावक पुरानी किताबों का भी आदान-प्रदान नहीं कर पा रहे हैं। सभी स्कूलों में एनसीईआरटी के साथ रेफरेंस बुक भी चलती हैं। ज्यादातर स्कूलों की किताबें तय दुकानों पर ही मिल रही हैं। ऐसे में कुछ पुस्तक विक्रेता पुराने प्रिट पर नया स्टिकर लगाकर बढ़े दाम पर बेच रहे हैं। वहीं, इस बार किताबों पर छूट भी कम मिल रही है।
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नई किताबों खरीदना अभिभावकों के लिए काफी महंगा पड़ रहा है। पुरानी किताबों के आदान-प्रदान के लिए अभिभावक लगातार संपर्क कर रहे हैं। कुछ स्कूलों ने इस सत्र से नए प्रकाशकों की किताबें शुरू कर दी हैं। इससे पुरानी से काम नहीं चल रहा है।
– मनोज कटारिया, गौतमबुद्ध नगर पैरेंट्स वेलफेयर सोसायटी
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नए सत्र में किताबों के दाम करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। स्टेशनरी समेत पूरा पाठ्यक्रम पर पहले के मुकाबले दोगुना खर्चा हो रहा है। साथ ही सारी किताबें मिल भी नहीं रही हैं। तय दुकानें होने से दूसरी जगह किताब मिलती नहीं।
– टीके भाटी, अभिभावक