हेलीकाप्टर क्रैश में शहीद विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान के घर पहुंचे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, पार्थिव देह आने का इंतजार
कुन्नूर हेलिकॉप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत के साथ अंतिम सांस लेने वाले आगरा के लाल विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान के घर कल से ही शुभचिंतकों-रिश्तेदारों और आगरा के लोगों का तांता लगा है। हर आंख नम है और हर दिल गमगीन। इस बीच गुरुवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने पृथ्वी सिंह के निधन पर गहरा शोक जताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने आगरा के दयालबाग के सरन नगर स्थित पृथ्वी सिंह के घर पहुंचकर गमगीन परिवार को ढांढस बंधाया।
सीएम योगी ने एक ट्वीट में लिखा-‘माँ भारती के वीर सपूत, आगरा निवासी विंग कमांडर श्री पृथ्वी सिंह चौहान जी का कल दुर्भाग्यपूर्ण हेलीकॉप्टर हादसे में निधन अत्यंत दुःखद है। विनम्र श्रद्धांजलि! मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों के साथ हैं। प्रभु श्री राम पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें। ॐ शांति!’ पृथ्वी सिंह चौहान अब हमारे बीच नहीं है इस बात का किसी को यकीन नहीं हो रहा है। परिवार को न पड़ोसियों को। उनका कहना है कि विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान के इशारे पर मिग-17 हेलिकॉप्टर तो आसमां में सालों से कलाबाजियां दिखा रहे थे। कई बार छोटे-बड़े संकट भी आए, मगर साहस और अनुभव से उन्हें मात दे दी। लेकिन बुधवार को कुन्नूर (तमिलनाडु) की उड़ान उनके जीवन की आखिरी उड़ान साबित हुई।
42 साल के पृथ्वी सिंह चौहान का परिवार का बीटा ब्रेड के नाम पर तीन पीढ़ियों का पैतृक कारोबार है। परिवार को बुधवार दोपहर एयरफोर्स मुख्यालय से फोन पर हेलिकॉप्टर हादसे की सूचना मिली। 75 साल के पिता सुरेंद्र सिंह चौहान, माता सुशीला देवी के साथ सभी परिजन विभिन्न माध्यमों से सच की तलाश में जुट गए। देर शाम जब पुष्टि हुई, तो परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। चार बहनों के इकलौते भाई पृथ्वी सिंह, जिन्हें सभी प्यार से टिंकू पुकारते थे, की प्रारंभिक पढ़ाई ग्वालियर में हुई और उसके बाद रीवा सैनिक स्कूल में अध्ययन के उपरांत एनडीए होते हुए एयरफोर्स पहुंचे थे।
आधुनिक तकनीक से लैस एमआई-17वी5 हेलिकॉप्टर पर विंग कमांडर पृथ्वी सिंह का पूरा कमांड था। कई सालों का अनुभव होने के साथ ही वह 109 हेलीकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर थे। इसी आधार पर उन्हें सीडीएस समेत वरिष्ठ अफसरों को ले जाने का मौका मिला था।
मां सुशीला देवी को जैसे ही पता चला कि टीवी पर जो खबर आ रही है वह सही है तो उनकी चीख निकल पड़ी। हाथ-पैर कांपने लगे। वह गश खाकर गिर गईं। परिजनों ने उन्हें संभाला। रो-रोकर मां का बुरा हाल है। एक ही बात बोल रही हैं कि कोई मेरे टिंकू को बुला दे। मां पृथ्वी सिंह को प्यार से टिंकू नाम से पुकारा करती थीं। भाई की मौत की खबर मिलते ही दूसरे नंबर की बहन मीना सरन नगर आ गई थीं। मीना की ससुराल शाहगंज में है। वह खुद फूट-फूटकर रो रही थीं। परिवार की अन्य महिलाओं ने उन्हें संभाला। उनसे कहा कि वह अपने आप को संभालें। मां को कौन देखेगा। मां की हालत ज्यादा खराब है। परिवार की महिलाएं पहली मंजिल पर बने कमरे में मौजूद थीं।
भूतल पर पिता सुरेंद्र सिंह चौहान को उनके भाइयों ने संभाल रखा था। सुरेंद्र सिंह चौहान की आंखें नम थीं। उनकी आवाज धीमी पड़ गई थी। सभी भाई उनके आसपास ही बैठे थे। कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि उन्हें कैसे समझाएं। पृथ्वी सिंह की पुरानी यादें रह-रहकर सभी को सता रही थीं। चाचा यशपाल सिंह भी रो रहे थे। बोल रहे थे कि उनके परिवार के लिए इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है। बड़े भाई सुरेंद्र सिंह चौहान खुद 75 साल के हैं। बेटा भले ही उनसे दूर रहता था सिर्फ फोन पर बातचीत होती थी। वह उनकी जान था। पृथ्वी पर पूरे परिवार को नाज था। वे ही नहीं रिश्तेदार तक अपने बच्चों को उनका उदाहरण दिया करते थे। बताते थे कि पृथ्वी ने अपने बूते पर यह मुकाम हासिल किया। खुद मेहनत की। पिता का जमा जमाया कारोबार है मगर देश की सेवा को सर्वोपरि माना। यही कहा कि पहले नौकरी है।
सुरेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि वर्ष 1965 में उनके पिता ने दयालबाग में बीटा ब्रेड के नाम से काम शुरू किया था। आज उनके परिवार की बीटा ब्रेड के नाम से पहचान है। वह सात भाई हैं। सबसे बड़े वह खुद हैं। राजेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह, मोहन सिंह, वीरेंद्र सिंह, रंजीत सिंह और यशपाल सिंह। सभी भाई सरन नगर में रहते हैं।
पिता सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उनके सभी भाई कारोबार करते हैं। बेटे ने बचपन में ही ठान लिया था कि वह एयरफोर्स में जाएगा। पूरे खानदान में उनका बेटा अकेला फौजी था। उन्हें भी उस पर फख्रा हुआ करता था। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यह दिन भी देखना पड़ेगा। बेटा यही कहता था कि रिटायरमेंट के बाद पापा आपका काम संभाल लूंगा।
विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान चार बहनों के इकलौते भाई थी। अगस्त में इस बार चौहान के परिवार के लिए रक्षाबंधन बहुत खास था। तीन दशक बाद ऐसा मौका आया था जब चारों बहनों ने उनकी कलाई पर एक साथ राखी बांधी थी। उनकी मौत ने पूरे परिवार को हिला दिया है। 42 वर्षीय पृथ्वी सिंह ने कक्षा पांच तक की पढ़ाई ग्वालियर में की थी। उसके बाद वह सैनिक स्कूल रीवा (मध्य प्रदेश) में पढ़ाई करने चले गए। वर्ष 2000 में उनका एनडीए में चयन हो गया। पहली पोस्टिंग हैदराबाद में मिली। बुधवार को तमिलनाडु के कुन्नूर में हेलीकॉप्टर क्रैश में उनकी भी मौत हो गई। इस खबर ने चौहान परिवार में कोहराम मचा दिया। खबर मिलते ही सरन नगर (न्यू आगरा) स्थित घर पर रिश्तेदारों का तांता लग गया।
पिता सुरेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि पृथ्वी सिंह चौहान उनके इकलौते बेटे थे। चार बेटियां हैं। शकुंतला, मीना, गीता और नीता। रक्षाबंधन से पहले पृथ्वी का स्थानांतरण सहारनपुर से कोयंबटूर हुआ था। ज्वाइनिंग से पहले बेटा घर आया था। उसी दौरान रक्षाबंधन पड़ा। बेटे के साथ बहू कामिनी सिंह, नातिनी आराध्या (13) व नाती अभिराज आए थे। उस दौरान उनके घर का माहौल देखने लायक था। सालों बाद चारों बहनों ने पृथ्वी की कलाई पर राखी बांधी थी। पृथ्वी अपनी बहनों पर जान छिड़कता था। पहले पढ़ाई और उसके बाद नौकरी के चलते कभी ऐसा नहीं हुआ कि रक्षाबंधन पर सभी एक साथ जुट सकें। बेटा छुट्टी में घर आया करता था। लगभग रोज फोन पर बातचीत होती थी। वह एक बार फोन करके उनका और अपनी मां सुशीला देवी का हाल जरूर लेता था।
पिता सुरेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि बेटे का बचपन ग्वालियर में बीता था। बेटा जब पांच साल का था तो ग्वालियर में पढ़ा करता था। उस दौरान टीवी पर फौज का एक नाटक आया करता था। उनके घर टीवी नहीं था। बेटा टीवी देखने पड़ोस में उनके परिचित के घर जाता था। घर लौटकर आता तो अपनी मां से कहा करता था कि उसे भी फौज में जाना है। उनकी पत्नी ने कभी बेटे को नहीं रोका। उससे कहा कि जो बनना है बने। वे और पापा दोनों उसके साथ हैं। उनकी पत्नी ने ही एक परिचित से पता किया था कि फौज में जाने के लिए बच्चे को कहां पढ़ाई करें। उन्होंने बेटे का दाखिला रीवा (मध्य प्रदेश) सैनिक स्कूल में कराया था। पहली बार में बेटे का एनडीए में चयन हुआ था। पिता ने बताया कि बेटे से कभी पढ़ाई के लिए नहीं कहना पड़ा। बेटा बचपन से ही बहुत होनहार था। स्कूल में भी शिक्षक उसकी बहुत तारीफ किया करते थे।
विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान के युद्ध कौशल की वायुसेना कायल थी। सूडान में विशेष ट्रेनिंग लेने के बाद पृथ्वी की गिनती वायुसेना के जाबांज पायलट्स में होती थी। अपने कौशल से दुश्मन के लड़ाकू विमानों को चकमा देने वाले पृथ्वी सिंह की एयरफोर्स में ज्वाइन करने के बाद पहली पोस्टिंग हैदराबाद हुई थी। इसके बाद वे गोरखपुर, गुवाहाटी, ऊधमसिंह नगर, जामनगर, अंडमान निकोबार सहित अन्य एयरफोर्स स्टेशन्स पर तैनात रहे। उन्हें एक वर्ष की विशेष ट्रेनिंग के लिए सूडान भी भेजा गया था।