भागवत ने उठाया बंटवारे का मुद्दा: बोले- यह कभी न मिटने वाली वेदना, यह तभी मिटेगी, जब विभाजन निरस्त होगा
नोएडा. सेक्टर-12 स्थित भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मन्दिर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कृष्णानन्द सागर की पुस्तक ‘विभाजनकालीन भारत के साक्षी’ का विमोचन किया। इस अवसर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि मातृभूमि का विभाजन न मिटने वाली वेदना है और यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा। उन्होंने कहा कि पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की नहीं अपितु सबक लेने की आवश्यकता है। गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी।
उन्होंने कहा कि यह राजनीति नहीं हमारे अस्तित्व का विषय है। इससे किसी को सुख नहीं मिला। भारत की प्रवृत्ति विशिष्टता को अपनाने की है। अलगाव की प्रवृत्ति वाले तत्वों के कारण देश का विभाजन हुआ। हम विभाजन के दर्दनाक इतिहास का दोहराव नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था। विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया।
इस्लामी आक्रमण को मुंह की खानी पड़ी
विभाजन की विभीषिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इसे तब से समझना होगा, जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण हुआ और गुरु नानक देव जी ने सावधान करते हुए कहा था कि यह आक्रमण देश और समाज पर है किसी एक पूजा पद्धति पर नहीं। इस्लाम की तरह निराकार की पूजा भारत में भी होती थी, किन्तु उसको भी नहीं छोड़ा गया। क्योंकि इसका पूजा से सम्बन्ध नहीं था, अपितु प्रवत्ति से था। प्रवत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहना है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे। इस प्रवत्ति का लगातार आक्रमण चला और हर बार मुंह की खानी पड़ी।
यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी होती तो क्या होता?
भागवत ने देश की स्वतन्त्रता को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के बारे में बताते हुए कहा कि 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था। उन्होंने कहा कि भीष्मपितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है। जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो, परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए। मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए। राष्ट्रगान से कुछ पंक्तियां हटाईं, राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में परिवर्तन किया, परन्तु वे मुट्ठीभर लोग फिर भी सन्तुष्ट नहीं हैं। भागवत ने प्रश्न उठाया कि यदि हमारे नेताओं ने पाकिस्तान की मांग ठुकरा दी होती तो क्या होता? उसका जवाब स्वयं देते हुए वह बोले – कुछ नहीं होता, परन्तु तब के नेताओं को स्वयं पर विश्वास नहीं था। वे झुकते ही गए।
विभाजन इस्लामिक और अंग्रेजों के आक्रमण का नतीजा
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विभाजन इस्लामिक और अंग्रेजों के आक्रमण का नतीजा है। विभाजन एक सोचे समझे षडयंत्र का परिणाम है। भारत को तोड़ने का प्रयास सफल नहीं होने देंगे। इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित विभाजनकाल के प्रत्यक्षदर्शियों को मोहन भागवत ने सम्मानित भी किया।